Friday 7 April 2017

जैविक खेती

बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या है, बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग, प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान के चक्र को (इकोलाजी सिस्टम) प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है। 
प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान का चक्र इकोलाजी सिस्टम निरन्तर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, जिसके प्रमाण हमारे ग्रंथों में प्रभु कृष्ण और बलराम हैं जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी था। परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थो के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है, और वातावरण प्रदूषित होकर, मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।

अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी स्वस्थ रहेंगे। भारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है। हरित क्रांति के समय से बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए एवं आय की दृष्टि से उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है अधिक उत्पादन के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है जिससे सीमान्य व छोटे कृषक के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लग रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे है। इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत वर्षो से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिध्दान्त पर खेती करने की सिफारिश की गई, जिसे प्रदेश के कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए, बढ़ावा दिया जिसे हम ''जैविक खेती'' के नाम से जानते है।

जैविक खेती से विभिन्न प्रकार के लाभ होते हैं। कृषकों की दृष्टि से होने वाले लाभों में भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। साथ ही सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से कास्त लागत में कमी आती है। फसलों की उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। मिट्टी की दृष्टि से भी जैविक खेती लाभप्रद है। जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि कीगुणवत्ता में सुधार आता है। भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती हैं और भूमि से पानी का वाष्पीकरण कमहोता है। जैविक खेती पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभकारी है इससे भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती हैं।मिट्टी खाद पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण मे कमी आती है। खाद बनाने में कचरे का उपयोग होने से बीमारियों में कमी आती है। फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि होती है।

एक बीघा जमीन – सिर्फ एक गाय और एक नीम...

एक हैक्टेयर (100 मीटर x 100 मीटर) भूमि में लगभग 6 बीघा होते है, अक्सर किसान भाई बीघा नाम को ही आधार मानकर खेती की सभी गणनाएं (नाप-तोल) करते है | इसलिये एक बीघा में जितनी खाद व् जैविक कीट नियंत्रक की आवश्यकता होती है उसी की गणना की जाये तो आसानी रहेगी |
एक गाय: वर्ष भर में एक गाय लगभग 3 से 3.5 टन गोबर देती है यदि सिर्फ गोबर से भी खाद बने तो लगभग 2 टन खाद तो बनेगी ही जो की एक बीघा जमीन में यदि तीन फसल या सब्जियों की फसल भी ली जाये तो पर्याप्त है | इसी प्रकार गाय लगभग 1000 लीटर मूत्र पैदा करती है जिसमें से आधा तो खाद या सिंचाई के साथ दे देने के बाद भी 500 लीटर गोमूत्र व् नीम की पत्ती से इतना कीट नियंत्रक बन सकता है की एक बीघा जमीन में वर्ष भर में हर 15 दिन बार लगभग 20 छिडकाव किये जा सकते है |
एक नीम: नीम की पत्त्तियां तो गोमूत्र आधारित कीटनाशक व् भूमि में हरी खाद के रूप में काम आ जाती है साथी ही एक नीम से कम से कम 50-60 किलो निबोली मिलती है जिसका लगभग 10-15 लीटर नीम तेल निकलने के बाद 40 किलो खल को जमीन में मिलाने से पोषक तत्व तो मिलते ही है साथ ही जमीन से पैदा होने वाली फसलों के कीड़े-रोग भी कम हो जाते है |
अतः जैविक खेती को सरल बनाने के लिए प्रतिबीघा जमीन के हिसाब से एक गाय का पालन और एक नीम लगायें तो बाहर से शायद कुछ भी लाने की जरुरत नही पड़ेगी साथ ही मिलेगी नीम की छाया और गाय का शुद्ध दूघ |

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