Friday, 7 April 2017

मुझे रेल से धुनुष कोटि से रामेश्वरम तक समुंदर में बने रेल पुल से ट्रेन से जाने का अवसर मिला । डिब्बे में मेरा परिचय एक स्थानीय छात्र से हुआ । जब गाड़ी पुल पर से जा रही थी तब उसने मेरा ध्यान रेलवे पुल के साथ बड़े बड़े चाकोर लगभग 10′ X 10′ आकार के पत्थरों की ओर दिलाया ।
हर पथ्थर ऊपर से समतल था और बिलकुल सीधी लाइन में रेलवे लाइन के साथ बिछाये गये थे और कहा कि यह रेलवे पुल इन्ही पथ्थरों के कारण से समुंदर में बन पाया है और यह पथ्थर रामायण काल के है। ये पथ्थर समुंदर में इतने गहरे जमे हुए है कि इनका Alignment एक इन्च भी इधर उधर नही हुआ जबकि सागर की उत्ताल तरंगों के सामने बड़े बड़े जहाज़ भी तहस नहस हो जाते हैं । प्रश्न आज यह भी है इन पथ्थरों को किस पहाड़ से काटा गया , यहाँ लाया गया और समुंदर में एक सीधी लाइन में एक दुरी पर बिछाया गया ताकि समुंदर के जल में प्रवाह बना रहे लेकिन इस सारी प्रक्रिया को अगर आज भी दोहराया जाया तो मुझे नही लगता कि कोई क्रेन इन पथ्थरों को लाने और समुंदर में बिछाने में सक्षम है ।
रामायण कालीन वानर जाति अब समाप्त हो गई है लेकिन जैसा कि रामायण में वर्णित है, उसके अनुसार यह वीर और बलशाली सेना थी। बाली ने रावण को अपनी कांख में दबाकर चक्कर खिलाये थे। नल नील जैसे इंजीनियर थे जिन्हें ऐसे पत्थर निर्माण की विधि मालुम थी जो समुद्र में डूबते नहीं थे। हनुमानजी, अंगद, जामंवत और उनके जैसे ही वीर वानर मिलकर ऐसे पत्थर स्थापित करने में सक्षम थे।
रामायण में जो रामेश्वरम से लेकर श्रीलंका तक का पुल बना था उसे अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी माना और अपने सैटेलाइट तस्वीरों से  इसकी पुष्टि भी की, बस दुःख इस बात का होता है की, भारत के सेक्युलरों ने (कांग्रेस) ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर राम के अस्तित्व को ही नकार दिया

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