Thursday, 6 April 2017

आपने कभी सोचा है कि हमारे देश में #वृद्धाश्रमो की संख्या क्यों बढ़ती जा रही है??
क्यों की हम अपनी नई पीढ़ी को अंग्रेजी सिखाने के चक्कर में उसे हिन्दू संस्कृति से दूर करते जा रहे हैं..
हिन्दू संस्कृति में माता-पिता को भगवान माना गया है, पर हम अपने बच्चों को ईसाई स्कूलों में भेजकर अपनी संस्कृति से दूर कर रहे हैं, और ये अंग्रेजी वाली औलाद बड़ी होकर अपने माँ-बाप को कूड़ा करकट समझने लगे हैं...
अपने बच्चों को शिक्षा के साथ साथ संस्कार भी देना जरूरी है, जो ईसाई स्कूलों में नहीं मिलता,, संस्कार और शिक्षा दोनों के लिए #गुरुकुल ही श्रेष्ठ जगह है..
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भारत में अब बेहद अच्छी शुरुआत हो गई है ...पहले तीन तलाक से पीड़ित 4 मुस्लिम महिलाओं ने हिंदू धर्म स्वीकार किया था अब तो मुस्लिम लड़कियां भी निकाह के पहले ही तीन तलाक से डरकर हिंदू धर्म स्वीकार कर रही हैं ...पहले जोधपुर के बाद अब पश्चिमी यूपी के बागपत में भी एक मुस्लिम लड़की ने हिंदू धर्म स्वीकार करते हुए एक हिंदू से शादी किया और कहा कि उसने टीवी पर तीन तलाक पीड़ित महिलाओं की दुर्दशा देखकर इस्लाम को त्याग दिया है
जागो मुस्लिम महिला
ओं जागो जो धर्म तुम्हें इज्जत सम्मान नहीं दे रहा उस धर्म को जबरदस्ती धोने से कोई फायदा नहीं है
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जो धर्म की रक्षा नहीं करता उसका नाश होता है आजादी के बाद एक बार फिर हिंदू समाज दोराहे पर खड़ा है ...

– एक दिन पूरे काबूल (अफगानिस्तान) का व्यापार हिन्दुओ का था, आज उस पर तालिबानों का कब्ज़ा है |
– सत्तर साल पहले पूरा सिंध सिंधियों का था, आज उनकी पूरी धन संपत्ति पर पाकिस्तानियों का कब्ज़ा है |
– एक दिन पूरा कश्मीर धन धान्य और एश्वर्य से पूर्ण पण्डितों का था, तुम्हारे उन महलों और झीलों पर आतंक का कब्ज़ा हो गया और तुम्हे मिला दिल्ली में दस बाय दस का टेंट..|
– एक दिन वो था जब ढाका का हिंदू बंगाली पूरी दुनियाँ में जूट का सबसे बड़ा कारोबारी था | आज उसके पास सुतली बम भी नहीं बचा |
– ननकाना साहब, लवकुश का लाहोर, दाहिर का सिंध, चाणक्य का तक्षशिला, ढाकेश्वरी माता का मंदिर देखते ही देखते सब पराये हो गए | पाँच नदियों से बने पंजाब में अब केवल दो ही नदियाँ बची |
– यह सब किसलिए हुआ ? केवल और केवल असंगठित होने के कारण ..| इस देश के मूल समाज की सारी समस्याओं की जड़ ही संगठन का अभाव है |
– आज भी इतना आसन्न संकट देखकर भी बहुतेरा समाज गर्राया हुआ है | कोई व्यापारी असम के चाय के बागान अपना समझ रहा है, कोई आंध्र की खदानें अपनी मान रहा है | तो कोई सोच रहा है ये हीरे का व्यापार सदा सर्वदा उसी का रहेगा कभी कश्मीर की केसर की क्यारियों के बारे में भी हिंदू यही सोचा करता था |
– तू अपने घर भरता रहा और पूर्वांचल का लगभग पचहत्तर प्रतिशत जनजाति समाज विधर्मी हो गया | बहुत कमाया तूने बस्तर के जंगलों से…आज वहाँ घुस भी नहीं सकता |
आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस पर संकट क्या आने वाला है | बचे हुए समाज में से बहुत सा अपने आप को सेकुलर मानता है |
कुछ समाज लाल गुलामों का मानसिक गुलाम बनकर अपने ही समाज के खिलाफ कहीं बम बंदूकें, कहीं तलवार तो कहीं कलम लेकर विधर्मियों से ज्यादा हानि पहुंचाने में जुटा है |
ऐसे में पाँच से लेकर दस प्रतिशत समाज ही बचता है जो अपने धर्म और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील है | धूर्त सेकुलरों ने उसे असहिष्णु और साम्प्रदायिक करार दे दिया |
इसलिए आजादी के बाद एक बार फिर हिंदू समाज दोराहे पर खड़ा है |
एक रास्ता है, शुतुरमुर्ग की तरह आसन्न संकट को अनदेखा कर रेत में गर्दन गाड़ लेना तथा दूसरा तमाम संकटों को भांपकर सारे मतभेद भुलाकर संगठित हो संघर्ष कर अपनी धरती और संस्कृति बचाना |

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