राजस्थान के जोधपुर जिले के गांव उचियाड़ा के 74 साल के किसान भंवरलाल ने जैविक खेती में नए प्रयोगों से बहुत नाम कमाया है और फसलों का उत्पादन बढ़ा कर कमाई भी की है. भंवरलाल के पास 125 बीघे जमीन है, जिस में 75 बीघे सिंचाई वाली है. साल 1962 में मैट्रिक पास करने के बाद भंवरलाल मास्टर बन गए. 3 साल तक नौकरी करने के बाद वे नौकरी छोड़ कर खेती के काम में लग गए.
भंवरलाल खरीफ में बाजरा, तिल व मूंग की फसल उगाते हैं और रबी में जीरा, सौंफ, मेथी, धनिया, राई व चारा फसलें (रिजका) उगाते हैं. उन के घर में 12 गायें हैं, जिन से खेती के लिए जैविक खाद गोबर के रूप में मिल जाती है. वे गायों को इस तरह रखते हैं कि उन का मूत्र भी एक नाली में बह कर इकट्ठा हो जाए.
जैविक खेती के तहत उन्होंने गौमूत्र इकट्ठा कर के एक ड्रम में भर कर उसे सिंचाई के पानी के साथ मिला कर देना शुरू किया. इस से फसलों के कीटरोग के अंश खत्म हो गए और फसल की पैदावार भी बढ़ी. जैविक खाद के साथ गौमूत्र देने से फसल की गुणवत्ता भी अच्छी रही और अनाज स्वादिष्ठ भी होने लगा. गोबर की खाद व गौमूत्र जमीन में देने से फसलों में सिंचाई भी कम करनी पड़ी. इस से पानी की बचत हुई और गैरजरूरी रासायनिक खाद व दवाओं का खर्च भी बचा. इस के साथ दीमक से बचाव भी हो गया.
जैविक खेती में नवाचारों में छाछ इकट्ठा कर के खट्टा होने पर नीबू की फसल व अन्य फसलों पर छिड़कने से पत्तों का सिकुड़न रोग खत्म हो गया और पत्तों में पीलेपन की बीमारी नहीं रही. नीबू, आक व धतूरे के पत्तों और निंबोली को ड्रम में भर कर उस की 10 किलोग्राम मात्रा में 100 लीटर पानी डाल कर उस से छिड़काव करने से सौंफ, जीरा व धनिया में कीटों व दूसरे रोगों से छुटकारा पाया. भंवरलाल बताते हैं कि जैविक खेती में गोबर की जैविक खाद का बहुत महत्त्व है. इस में घर के पशुओं का गोबर काम आ जाता है. कभीकभी बाहर से भी गोबर खरीदना पड़ता है, जिसे वे गड्ढे में सड़ा देते हैं और फिर जरूरत के मुताबिक फसलों में इस्तेमाल करते हैं. भंवरलाल का कहना है कि यूरिया से बढ़वार तो जरूर होती है, परंतु फसलों में ताकत नहीं होती और खेती टिकाऊ नहीं रहती है.
भंवरलाल के मुताबिक निंबौली को इकट्ठा कर के पीस कर व छान कर फसल पर छिड़काव करने से कीटों व रोगों में कमी होती है. इस से हवा भी साफ रहती है. भंवरलाल लगातार जैविक खेती में आगे बढ़ रहे हैं. उन्हें जहां भी नई जानकारी मिलती है, वे उसे समझ कर अपनाते हैं. पिछले साल भंवरलाल को पशुपालन में जिला स्तर पर प्रगतिशील किसान के नाते 25 हजार रुपए का इनाम दिया गया था. उन्हें उद्यानविभाग से उन्नत बागबानी में जिलास्तर पर 10 हजार रुपए और उन्नतकृषि में 10 हजार रुपए के इनाम भी मिले हैं. उन्होंने किसानों की कई जैविकप्रतियोगिताओं में भाग लिया और उन्हें कई प्रमाणपत्र मिले. इस प्रकार जैविक खेती से भंवरलाल आगे बढ़ रहे हैं. उन्होंने नाम तो कमाया ही है, साथ ही उन की आमदनी भी बढ़ी है. पड़ोसी किसान उन के खेत पर जैविक खेती देखने आते हैं.
भंवरलाल बताते हैं कि जैविक खेती में देशी खाद की करामात होती है. सभी किसान भाई जैविक खेती की तरफ बढ़ें, तो फसल में जहर कम हो सकता है. इस से खर्चा कम होगा, स्वास्थ्य सुधरेगा व खेती में सिंचाई कम होगी. जैविक खेती ही टिकाऊ खेती है. भंवरलाल ने जैविक खेती में तमाम प्रयोग किए हैं.
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