Friday, 1 September 2017

दुनिया देखेगी भारत के इंजीनियरों का कमाल, 60 नदियों को जोड़कर बनेगी एक महानदी... हैरत में संसार

मोदी सरकार ने देश की बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने के लिए 87 बिलियन डॉलर (करीब 5 लाख करोड़ रुपए) का प्रोजेक्ट शुरू करने जा रही है। एक महीने के भीतर इस पर काम शुरू हो जाएगा। अफसरों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट का मकसद देश को बाढ़ और सूखे से निजात दिलाना है। 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने देश की नदियों को जोड़े जाने का प्रस्ताव रखा था। इसके असर को जानने के लिए एक कार्यदल का गठन किया गया था। 60 नदियों को जोड़ने का प्लान : योजना के पहले फेज को मोदी मंजूरी दे चुके हैं। प्लान के तहत गंगा समेत देश की 60 नदियों को जोड़ा जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि ऐसा होने के बाद किसानों की मानसून पर निर्भरता कम हो जाएगी और लाखों हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई हो सकेगी। बीते दो सालों से मानसून की स्थिति अच्छी नहीं रही है। भारत के कुछ हिस्सों समेत बांग्लादेश और नेपाल बाढ़ से खासे प्रभावित रहे हैं। सूत्रों की मानें तो नदियों को जोड़ने से हजारों मेगावॉट बिजली पैदा होगी।
पहले फेज में क्या होगा? : केन नदी पर एक डैम बनाया जाएगा। 22 किमी लंबी नहर के जरिए केन को बेतवा से जोड़ा जाएगा। केन-बेतवा मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से को कवर करती हैं। बीजेपी नेता संजीव बालियान के मुताबिक, "हमें रिकॉर्ड वक्त में क्लीयरेंस मिल गया है। अंतिम दौर के क्लीयरेंस भी इस साल के अंत तक मिल जाएगा। केन-बेतवा लिंक सरकार की प्रायोरिटी में है।" सरकार पार-तापी को नर्मदा और दमन गंगा के साथ जोड़ने की तैयारी कर रही है। अफसरों का कहना है कि ज्यादा पानी वाली नदियों मसलन गंगा, गोदावरी और महानदी को दूसरी नदियों से जोड़ा जाएगा। इसके लिए इन नदियों पर डैम बनाए जाएंगे और नहरों द्वारा दूसरी नदियों को जोड़ा जाएगा। बाढ़-सूखे पर कंट्रोल करने के लिए यही एकमात्र रास्ता है।
योजना में कोई खामी नहीं : सरकार को इस मसले पर सलाह देने वाले इकोनॉमिस्ट अशोक गुलाटी कहते हैं कि व्यवहारिक रूप से नदियों को जोड़ने के प्लान में कोई खामी नजर नहीं आती। इसमें अरबों डॉलर का खर्च आएगा। काफी पानी वेस्ट भी होगा। सबसे पहले हमें वॉटर कंजरवेशन पर जोर देना होगा। वहीं मध्य प्रदेश के पन्ना के राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले श्यामेंद्र सिंह का कहना है, "फॉरेस्ट रिजर्व के पास केन पर डैम बनाने से पर्यावरण को काफी नुकसान होगा। इससे भयंकर बाढ़ आ सकती है जिससे जंगल पर असर पड़ेगा।" अफसरों का कहना है कि योजना में बाघों, वन्य जीवों और गिद्धों की सुरक्षा को ध्यान रखा गया है।क्या है नदियों को जोड़ने का प्रोजेक्ट? : भारत की सारी बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने का प्रस्ताव पहली बार इंजीनियर सर आर्थर कॉटन ने 1858 में दिया था। कॉटन इससे पहले कावेरी, कृष्णा और गोदावरी पर कई डैम और प्रोजेक्ट बना चुके थे। लेकिन तब के संसाधनों के बूते से बाहर होने के चलते यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी। 1970 में तब इरिगेशन मिनिस्टर रहे केएल राव ने एक नेशनल वॉटर ग्रिड बनाने का प्रस्ताव दिया। राव का कहना था कि गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में ज्यादा पानी रहता है जबकि मध्य और दक्षिण भारत के इलाकों में पानी की कमी रहती है। लिहाजा उत्तर भारत का अतिरिक्त पानी मध्य और दक्षिण भारत तक पहुंचाया जाए। केंद्रीय जल आयोग ने इस योजना को तकनीकी रूप से अव्यावहारिक बताते हुए खारिज कर दिया।
 इसके बाद नदी जोड़ परियोजना की चर्चा 1980 में हुई। एचआरडी मिनिस्ट्री ने एक रिपोर्ट तैयार की थी। नेशनल परस्पेक्टिव फॉर वॉटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट नामक इस रिपोर्ट में नदी जोड़ परियोजना को दो हिस्सों में बांटा गया था- हिमालयी और दक्षिण भारत का क्षेत्र। 1982 में इस मुद्दे पर नेशनल वॉटर डेवलपमेंट एजेंसी के रूप में एक्सपर्ट्स की एक ऑर्गनाइजेशन बनाया गया। इसका काम यह स्टडी करना था कि पेनिन्सुला की नदियों और दूसरे जल संसाधनों को जोड़ने का काम कितना प्रैक्टीकल है। एजेंसी ने कई रिपोर्ट्स दीं, लेकिन बात वहीं की वहीं अटकी रही।2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने नदी जोड़ परियोजना के बारे में प्रपोजल रखा गया। केंद्र ने नदियों को आपस में जोड़ने की व्यावहारिकता परखने के लिए एक कार्यदल का गठन किया। इसमें भी परियोजना को दो भागों में बांटने की सिफारिश की गई. पहले हिस्से में दक्षिण भारतीय नदियां शामिल थीं जिन्हें जोड़कर 16 कड़ियों की एक ग्रिड बनाई जानी थी। हिमालयी हिस्से के तहत गंगा, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों के पानी को इकट्ठा करने की योजना बनाई गई। 2004 में यूपीए सरकार आने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

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