Friday, 9 June 2017

मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ईस्वी पूर्व हुआ था। विशाखदत्त कृत 




मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए वृषल (निम्न कुल में उत्त्पन्न) शब्द का प्रयोग किया था।

घनानंद को हराने के लिए चाणक्य ने चंदगुप्त मौर्य की मदद की थी जो बाद में चन्द्रगुप्त का प्रधानमंत्री बना। नन्द वंश का विनाश करने में चन्द्रगुप्त ने कश्मीर के राजा प्रवर्तक से सहायता प्राप्त की थी।चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में लगभग 50000 अश्वारोही सैनिक, 9000 हाथी और 8000 रथ थे। चन्द्रगुप्त ने नंदों के पैदल सेना से तीन गुनी अधिक संख्या में अर्थात 60000 सैनिको को लेकर सम्पूर्ण उत्तर भारत को रौंद डाला था। 
चन्द्रगुप्त मगध की राजगद्दी पर 322 ईसा पूर्व में बैठा। चन्द्रगुप्त जैन धर्म का अनुयायी था। चन्द्रगुप्त ने 305 ईस्वी में सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर को हराया था। -
सेल्यूकस ने अपने बेटी कार्नेलिया की शादी चन्द्रगुप्त से करवा दी। युद्ध की संधि शर्तो के अनुसार चार प्रांत काबुल ,कांधार, हेरात और मकरान चन्द्र्पुत को दिए गए। 
मेगास्थनीज सेल्यूकस निकटर का राजदूत था जो चन्द्रगुप्त के दरबार में रहता था। चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस के बीच हुए युद्ध का वर्णन एप्पियानस ने किया है। प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए थे।  - 
चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना अंतिम समय कर्नाटक के श्रवणबोला नामक स्थान पर बिताया। चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 298 ईसा पूर्व में श्रवणबोला में उपवास से हुई। बिन्दुसार ,चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी हुआ। 298 ई.पु. में बिन्दुसार मगध की राजगद्दी पर बैठा। बिन्दुसार को अमित्रघात के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है शत्रु विनाशक। बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।
वायुपुराण में बिन्दुसार को भद्र्सार कहा गया है। जैन ग्रंथो में बिन्दुसार को सिंहसेन कहा गया है। बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में हुए दो विद्रोहों का वर्णन है। इन विद्रोहों को दबाने के लिए बिन्दुसार ने पहले सुसीम और बाद में अशोक को भेजा। बौद्ध विद्वान तारानाथ के अनुसार बिन्दुसार को 16 राज्यों का विजेता बताया है। 
बिन्दुसार का उत्तराधिकारी अशोक महान हुआ जो 269 ई.पु. में मगध की राजगद्दी पर बैठा। राजगद्दी पर बैठने के समय अशोक अवन्ती का राज्यपाल था। मास्की और गुर्जरा अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है। 
पुराणों में अशोक को अशोक वर्धन कहा गया है। अशोक ने अपने अभिषेक के 8वें वर्ष लगभग 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसली पर अधिकार कर लिया।
उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा। 

भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया था। अशोक के शिलालेखो में ब्राह्मी ,खरोष्टी ,ग्रीक और अरमाइक लिपि का प्रयोग हुआ है। अशोक के शासन में जनपदीय न्यायालय के न्यायाधीश को राजूक कहा जाता था।
मौर्य प्रशासन में गुप्तचर विभाग महामात्य सर्प नामक अमात्य के अधीन था। मौर्य वंश का शासन 137 वर्षो तक रहा। मौर्य वंश का अंतिम शासक ब्रुह्द्र्थ था। इसकी हत्या सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसवी पूर्व में कर दी और मगध पर शुंग वंश की नीव डाली। 


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