स्वयं प्रोजेक्ट
निबौली से शुरू कर सकते हैं खुद का व्यवसाय...
औषधीय गुणों से भरपूर नीम की निबौलियों (नीम का बीज) को अगर उत्तर-प्रदेश के किसान एकत्रित करें, तो इससे खुद का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है। दातून से लेकर खेत में डालने वाली यूरिया तक प्रयोग होने वाली नीम का संरक्षण मध्यप्रदेश के किसान कर रहे हैं और हजारों आदिवासियों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं।
लखनऊ जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर माल ब्लॉक से दक्षिण दिशा में मसीड़ा हमीर गाँव की रहने वाली रीता देवी (36 वर्ष) का कहना है, “हमारे गाँव में एक जमाने से नीम के बहुत पेड़ हैं, पर कभी किसी ने निबौली को जमा नहीं किया, पूरी तरह से जानकारी भी नहीं है कि इसे कहां बेचें और कैसे इस्तेमाल करें, वैसे भी निबौलियों को इकट्ठा करना बहुत बवाल का काम लगता है।”
वो आगे बताती हैं, “बरसात शुरू होते ही जैसे निबौलियां पक जाती हैं सब इसे कूड़ा समझकर फेंक देते हैं, कुछ बच्चे बीनकर इकट्ठा भी करते हैं तो निबौली मिट्टी के मोल बिकती हैं। जबकि मेहनत बहुत करनी पड़ती है, अगर इसके बारे में पूरी जानकारी मिले तो हम लोग भी एकत्रित करना शुरू करें।”सीतापुर जिले के इफको के असिस्टेंट मैनेजर शिव शुक्ला का कहना है, “किसान नीम की निबौलियों का कलेक्शन बहुत ही कम मात्रा में कर रहे हैं, नीम की गुणवत्ता गाँव-गाँव जाकर देने के बाद भी किसानों का रुझान बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा है, अगर किसान इसे इकट्ठा करके बेचते हैं तो उनकी अच्छी आमदनी हो सकती है पिछली वर्ष 15 रुपए किलो नीम की निबौली खरीदी गई हैं।”
उत्तर प्रदेश में जहां नीम की निबौलियों को एकत्रित करने को लेकर किसान उदासीन नजर आ रहे हैं वहीं मध्यप्रदेश में रहने वाले अभिषेक गर्ग (35 वर्ष) ने इन्हीं निबौलियों को न सिर्फ अपना व्यवसाय बनाया, बल्कि सैकड़ों आदिवासियों को रोजगार का जरिया भी दिया है। मध्यप्रदेश के ढार जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में गुजरी गाँव हैं। इस गाँव के निवासी अभिषेक गर्ग बताते हैं, “मैं पिछले 15 साल से खेती कर रहा हूं। खेती करने के दौरान ये आभास हुआ कि जमीन की मिट्टी बहुत कठोर हो रही है और इसका असर फसल की पैदावार पर पड़ रहा है, वर्ष 2006 से ही नीम की निबौलियों को एकत्रित करने के लिए मैंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया, और नीम की फैक्ट्री लगाई।”
वो आगे बताते हैं, “आज हमारे यहां हजारों आदिवासी निबौली बेचने आते हैं ये उनके रोजगार का माध्यम भी बन गया है।” इस फैक्ट्री के लगने के बाद मध्यप्रदेश के हजारों किसान कई हेक्टेयर जमीन में निबौलियों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इलाहाबाद के फूलपुर तहसील में इफ्को कॉपरेटिव रूरल डेवलपमेंट ट्रस्ट के डा. एच एम शुक्ला का कहना है, “जिस भी जिले के किसान नीम की निबौलियों का संरक्षण करना चाहते हैं, प्रदेश में इफ्को के 64 किसान सेवा केंद्र हैं, इफ्को के फील्ड मैनेजर भी तैनात है किसान उनसे भी संपर्क कर सकते हैं, फूलपुर तहसील में पिछले वर्ष आसपास के 20-25 किलोमीटर के किसानों ने आठ दस टन निबौली एकत्रित की थी।” वो आगे बताते हैं, “पिछले वर्ष आसपास के जिले फैजाबाद, कौशाम्बी, सुल्तानपुर, बाराबंकी से 40-50 टन निबौलिया एकत्रित हो गई थी।”मध्यप्रदेश के अभिषेक नीम की फैक्ट्री से होने वाले मुनाफे को साझा करते हुए बताते हैं, “जो आदिवासी कभी बेरोजगार थे आज वो नीम की निबौलियां हमारी फैक्ट्री में बेचकर अपने घरेलू खर्चे आसानी से निकाल लेते हैं, हजारों की संख्या में यहां के किसान नीम का तेल और खली अपने खेतों में इस्तेमाल कर रहे हैं, इससे निबौलियों का सही प्रयोग हो रहा है।” अभिषेक का काम यहीं पर समाप्त नहीं हुआ है। ये लोगों को समूह में नीम के तेल, खली, अमृत पानी के सही इस्तेमाल करने के बारे में जागरूक कर रहे हैं। कई राज्यों से लोग आर्डर पर भी नीम का तेल और खली मंगाते हैं। नीम का तेल 150 रुपए लीटर और खली 1500 रुपए कुंतल के हिसाब से बेचते हैं।
फसल में कीड़ा लगने से रोकती है नीम की खली
किसी भी फसल में कीड़ा लगा हो तो नीम की खली उसमें काफी फायदा करती है। सैकड़ों किसान खाद की जगह नीम की खली का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे लागत भी कम आ रही है और जैविक ढंग से उगाई गई फसल की कीमत भी ज्यादा मिलती है।
नीम कोटेड यूरिया को दिया जा रहा बढ़ावा
यूरिया की कालाबाजारी रोकने और नीम के फायदों को देखते हुए केंद्र सरकार ने नीम कोटेड यूरिया की शुरूआत की है। यूपी में गोरखपुर में एक खाद कारखाने का शिलान्यास करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नीम कोटेड यूरिया के फायदे गिनाए थे। नीम की मांग और बढ़ती खपत को देखते हुए सरकारी उवर्रक संस्था इफ्को अपने स्तर पर किसानों को नीम के पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर रही है।
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