कभी हिन्दुओं का तीर्थ स्थल था
टांगीनाथ धाम ...
भारत चमत्कारों से भरा हुआ देश है यहां हर जगह आपको कुछ ना कुछ चमत्कारिक चीजें दिखाई दे ही जाती हैं। संस्कृति से भरे हुए इस देश में बहुत से घटनाऐं जो पुराणों और वेदों में उल्लेखित हैं वह कहीं ना कहीं सच दिख ही जाती हैं। आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे धांम की जो भारत के झारखंड राज्य में स्थित है औऱ यहां आज भी भगवान परशुराम का फरसा रखा है जिससे कभी उन्होंने पूरी पृथ्वी के क्षत्रियों का नाश किया था। आइये जानते हैं।
टांगीनाथ धाम, झारखंड राज्य मे गुमला शहर से करीब 75 km दूर तथा रांची से करीब 150 km दूर घने जंगलों के बीच स्थित है। यहाँ पर आज भी भगवान परशुराम का फरसा ज़मीं मे गड़ा हुए है। झारखंड में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ गया। धाम में आज भी भगवान परशुराम के पद चिह्न मौजूद हैं।
परशुराम ने यहीं पर घोर तपस्या की थी
टांगीनाथ धाम मे भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम ने तपस्या कि थी। परशुराम टांगीनाथ कैसे पहुचे इसकी कथा इस प्रकार है। जब राम, राजा जनक द्वारा सीता के लिये आयोजित स्वयंवर मे भगवान शिव का धनुष तोड़ देते है तो परशुराम बहुत क्रोधित होते हुए वहा पहुँचते है और राम को शिव का धनुष तोड़ने के लिए भला – बुरा कहते है।
सब कुछ सुनकर भी राम मौन रहते है, यह देख कर लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और वो परशुराम से बहस करने लग जाते है। इसी बहस के दौरान जब परशुराम को यह ज्ञात होता है कि राम भी भगवान विष्णु के ही अवतार है तो वो बहुत लज्जित होते है और वहाँ से निकलकर पश्चाताप करने के लिये घने जंगलों के बीच आ जाते है। यहां वे भगवान शिव की स्थापना कर और बगल मे अपना फरसा गाड़ कर तपस्या करते है। इसी जगह को आज सभी टांगीनाथ धाम से जानते हैं।
यहाँ पर गड़े लोहे के फरसे कि एक विशेषता यह है कि हज़ारों सालों से खुले मे रहने के बावजूद इस फरसे पर ज़ंग नही लगी है। और दूसरी विशेषता यह है कि ये जमीन मे कितना नीचे तक गड़ा है इसकी भी कोइ जानकारी नही है। एक अनुमान 17 फ़ीट का बताया जाता है।
फरसे से जुडी किवदंती
कहा जाता है कि एक बार क्षेत्र मे रहने वाली लोहार जाति के कुछ लोगो ने लोहा प्राप्त करने के लिए फरसे को काटने प्रयास किया था। वो लोग फरसे को तो नही काट पाये पर उनकी जाति के लोगो को इस दुस्साहस कि कीमत चुकानी पड़ी और वो अपने आप मरने लगे। इससे डर के लोहार जाति ने वो क्षेत्र छोड़ दिया और आज भी धाम से 15 km की परिधि में लोहार जाति के लोग नही बसते है।
भगवान शिव से भी है टांगीनाथ का सम्बन्ध
कुछ लोग टांगीनाथ धाम मे गड़े फरसे को भगवान शिव का त्रिशुल बताते हुए इसका सम्बन्ध शिवजी से जोड़ते है। इसके लिए वो पुराणों कि एक कथा का उल्लेख करते है जिसके अनुसार एक बार भगवान शिव किसी बात से शनि देव पर क्रोधित हो जाते है। गुस्से में वो अपने त्रिशूल से शनि देव पर प्रहार करते है। शनि देव त्रिशूल के प्रहार से किसी तरह अपने आप को बचा लेते है। शिवजी का फेका हुआ त्रिशुल एक पर्वत को चोटी पर जा कर धस जाता है। वह धसा हुआ त्रिशुल आज भी यथावत वही पडा है। चुकी टांगीनाथ धाम मे गडे हुए फरसे की उपरी आकर्ति कुछ-कुछ त्रिशूल से मिलती है इसलिए लोग इसे शिव जी का त्रिशुल भी मानते है।
खुदाई, निकले थे सोने और चांदी के आभूषण
1989 में पुरातत्व विभाग ने टांगीनाथ धाम मे खुदाई कि थी। खुदाई में उन्हें सोने चांदी के आभूषण सहित अनेक मूल्यवान वस्तुए मिली थी। लेकिन कुछ कारणों से यहां पर खुदाई बन्द कर दि गई और फिर कभी यहां पर खुदाई नही कि गई। खुदाई में हीरा जडि़त मुकुट, चांदी का अर्धगोलाकार सिक्का, सोने का कड़ा, कान की सोने की बाली, तांबे की बनी टिफिन जिसमें काला तिल व चावल रखा था, आदि चीजें मिलीं थीं। यह सब चीज़े आज भी डुमरी थाना के मालखाना में रखी हुई है।
कभी हिन्दुओं का तीर्थ स्थल था
टांगीनाथ धाम के विशाल क्षेत्र मे फैले हुए अनगिनत अवशेष यह बताने के लिए पर्याप्त है कि यह क्षेत्र किसी जमाने मे हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल रहा होगा लेकिन किसी अज्ञात कारन से यह क्षेत्र खंडहर मे तब्दील हो गया और भक्तों का यहां पहुचना कम हो गया। नक्सलवाद औऱ सरकार के लचर रवैये ने भी इस धाम को कोई महत्व नहीं दिया जिस कारण लोगों को इसके बारें में पता ही नहीं चला है। हो सकता है कि सरकार शायद इस पर कुछ काम करे औऱ इसे दुवारा सही से खोला जाये।
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