Tuesday, 27 June 2017

हिन्दुओ पर हो रहा अत्याचार, भारतीयों को तो नहीं पता पर अमरीका में पेश की गयी रिपोर्ट

बहुत तेज़ी से किया जा रहा है हिन्दुओं का दमन…!
सेकुलर हिन्दुओं की आँखें खोलने के लिए विश्व की सबसे पहली हिन्दू मानवाधिकार रपट जारी…!
हिन्दुओं के खिलाफ विधर्मियों के दमन, शोषण, अत्याचार और नरसंहार का एक लंबा इतिहास रहा है। विशेष रूप से उन मुल्कों में, जो इस्लामी छत्रछाया में पल रहे हैं या मजहबी राष्ट्र हैं। पाकिस्तान, बंगलादेश सहित भारत के जम्मू-कश्मीर प्रदेश में हिन्दुओं के विरुद्ध अत्याचार की मानो सभी हदें पार हो चुकी हैं।
अमरीका में बसे भारतवंशियों की संस्था हिन्दू-अमरीकन फाउंडेशन ने दुनियाभर में कार्यरत विभिन्न मानवाधिकार समूहों की उन तार्किक रपटों का अध्ययन किया है जिनमें हिन्दू नरसंहार, नस्लीय परिमार्जन, आतंकवाद और इस्लामी मजहबी कानूनों का शिकार हुए हैं। दक्षिण एशिया पर खास गौर किया गया है। इन विश्वसनीय और दस्तावेजी रपटों के गहन अध्ययन और विश्लेषण के बाद 71 पृष्ठ की एक विस्तृत रपट जारी की गई है।
विश्व में अपनी तरह की यह सबसे पहली रपट 13 जुलाई को अमरीका में एक कार्यक्रम में जारी की गई। रपट में पाकिस्तान, बंगलादेश और भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में हिन्दुओं के दमन का सिलसिलेवार विवरण दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि अमरीका में भारतवंशियों ने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में जिस तरह से अपनी एक खास जगह बनाई है उसी का परिणाम है कि अमरीकी नीति-निर्धारक हिन्दुओं की बातों और आकांक्षाओं की अनदेखी न करके उनके निराकरण का रास्ता तलाशने लगे हैं। हिन्दू-अमरीकन फाउंडेशन अमरीका में बसे 20 लाख हिन्दुओं का मंच है। यह दुनियाभर में हिन्दुओं से जुड़े मुद्दों पर नजर रखता है। हिन्दू अमरीकन फाउंडेशन के निदेशक मण्डल के सदस्य हैं मिहिर मेघानी, असीम आर.शुक्ला, निखिल जोशी और संजय गर्ग।
इस रपट पर पहली बार अमरीकी सांसदों ने भी खुलकर स्वीकारा है कि हिन्दुओं के खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं। भारत और अमरीकी भारतीयों के संसदीय “काकस” की अध्यक्ष इलियाना रोस लेहटिनन ने रपट पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि हिन्दुओं के विरुद्ध मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं की अब और अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। हिन्दू अन्य मत-पंथों व उनके अनुयायियों के प्रति हमेशा से ही मैत्रीभाव रखते आए हैं, फिर भी हिन्दू दशकों से तकलीफें और दर्द सहते आए हैं, दुनिया का भी उनकी पीड़ा की ओर कभी ध्यान नहीं गया।
सांसद गैरी एकरमन का कहना था कि यह रपट दुनियाभर में हिन्दुओं के अधिकारों की रक्षा करने में मदद करेगी। यह रपट ऐसा वार्षिक प्रकाशन है जिसमें वे सब मानवीय त्रासदियां दस्तावेज के रूप में होंगी जिन पर अमरीकी विदेश विभाग, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्रूमन राइट्स वाच जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं गौर नहीं करतीं या अनदेखा कर देती हैं। हिन्दू-अमरीकन फाउंडेशन के कार्यकारी परिषद सदस्य रमेश राव के अनुसार, पिछले एक साल में ही बंगलादेश, पाकिस्तान और भारत के जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं की हत्या, बलात्कार, यातनाओं आदि के 600 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं। हिन्दुओं के विरुद्ध अत्याचारों की अब और अनदेखी नहीं की जा सकती। यह संतोष की बात है कि अमरीकी संसद के नेता इस त्रासदी की असलियत जान गए हैं और इसके विरुद्ध आवाज बुलंद करने का मन बना चुके हैं।
रपट में बंगलादेश पर विशेष रूप से टिप्पणी की गई है जहां हिन्दू विरोधी कार्रवाइयों का लंबा इतिहास रहा है, जो बंगलादेश नेशनल पार्टी और जमाते-इस्लामी गठबंधन के उभार के बाद और बढ़ गई हैं। 1947 में वहां 30 प्रतिशत हिन्दू आबादी थी, आज महज 10 प्रतिशत है। रपट आरोप लगाती है कि लगभग 2 करोड़ बंगलादेशी हिन्दुओं का कम होना वहां जारी नरसंहारों और बलात् पलायन को मजबूर करने का ही परिणाम है। हिन्दू अमरीकन फाउंडेशन के निदेशक मंडल के सदस्य डा. असीम शुक्ला कहते हैं कि बंगलादेश के हिन्दुओं के लिए यातना, भेदभाव और प्रत्यक्ष हिंसा एक भयानक वास्तविकता बन गई है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बंगलादेश सरकार से वहां जारी पांथिक परिमार्जन और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के दमन पर जांच कराने की मांग करनी चाहिए।
इस हिन्दू मानवाधिकार रपट में पाकिस्तान और अल कायदा द्वारा प्रायोजित आतंकवाद पर खास चर्चा की गई है। भारत के जम्मू-कश्मीर प्रदेश में इस आतंकवाद ने हजारों हिन्दुओं का जीवन लील लिया है, लाखों को बेघरबार किया है और घाटी को हिन्दूविहीन कर दिया है। पाकिस्तान को भारत में आतंकवाद प्रायोजित करने का दोषी ठहराते हुए उसकी भत्र्सना की गई है। वहां लम्बे-चौड़े कुफ्र-विरोधी कानूनों के जरिए हिन्दुओं से मजहबी भेदभाव करने के सरकारी रवैए की चर्चा है। वहां गुलाम जैसी परिस्थितियों में हिन्दुओं से बंधुआ मजदूर की तरह व्यवहार करने की असंख्य घटनाओं की अनदेखी का पाकिस्तान सरकार पर आरोप लगाया गया है।
फाउंडेशन की कार्यकारी परिषद सदस्य और रपट तैयार करने में सहभागी शीतल डी. शाह का कहना है, हालांकि फाउंडेशन भारत-पाकिस्तान के बीच स्थाई शांति के प्रयासों का समर्थन करता है। लेकिन कश्मीर घाटी में हाल ही में हिन्दुओं के विरुद्ध हुईं घटनाओं के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता है। वहां जुलाई में ही हिन्दुओं के एक प्रमुख मंदिर पर हमला निदंनीय है।
अमरीकी सांसदों से मिले समर्थन को लेकर फाउंडेशन में उत्साह है। रपट के पहलुओं पर अमरीकी संसद में प्रस्ताव लाने पर भी विचार किया गया है। सांसद लेहटिनन और सांसद एकरमन ने कहा कि इन मानवाधिकार के मुद्दों पर वे फाउंडेशन का सहयोग करते रहेंगे। सांसद लेहटिनन ने इस मुद्दे पर फाउंडेशन द्वारा गुंजाए गए आह्वान की प्रशंसा की। आइए अब एक नजर डालते हैं रपट में उल्लिखित उन चंद घटनाओं पर जो हिन्दुओं के विरुद्ध बर्बर, जिहादी मानसिकता की असलियत बताती हैं।
बंगलादेश में आतंक:
जनवरी से नवम्बर, 2004 के बीच यहां बंगलादेशी हिन्दुओं पर हमले की 400 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनमें हत्या, बलात्कार, अपहरण, मंदिर तोड़ने और शारीरिक हमले की वारदातें शामिल हैं। बंगलादेश में हिन्दुओं को “दुश्मन” की संज्ञा दी गई है। 1965 के शत्रु सम्पदा आदेश-2, जिसके तहत हिन्दुओं की सम्पदा को शत्रु सम्पदा के रूप में चिन्हित किया गया है, का नाम बदलकर 1972 में निहित सम्पदा कानून कर दिया गया, जिसके अंतर्गत बंगलादेश सरकार ने खुद में कथित शत्रु सम्पदा निहित कर ली है। यह आदेश आज भी लागू है और राष्ट्रपति द्वारा आदेशित इस कानून पर अभी तक न्यायिक पुनर्समीक्षा नहीं की गई है।
1947 में वहां कुल आबादी में 30 प्रतिशत हिन्दू थे। 1961 आते-आते हिन्दुओं की आबादी घटकर 19 प्रतिशत हो गई। 1974 के आंकड़ों में मात्र 14 प्रतिशत हिन्दू थे। 2002 की जनसंख्या में हिन्दुओं का प्रतिशत कुल जनसंख्या में महज 9 रह गया था। भारत में मुस्लिम जनसंख्या से अगर इसकी तुलना करें तो देखेंगे कि 1947 में जहां भारत में 10 प्रतिशत मुस्लिम थे, 2001 में उनका प्रतिशत बढ़कर 13.2 हो गया था। बंगलादेश में सन् 1991 तक 2 करोड़ हिन्दुओं का कोई रिकार्ड नहीं था या उन्हें “लापता” कह दिया गया था। बंगलादेश में सत्ता पर जबसे बी.एन.पी. और जमाते इस्लामी गठबंधन काबिज हुआ है तब से हिन्दुओं के विरुद्ध यातनाओं का एक अंतहीन सिलसिला चल रहा है। चूंकि बी.एन.पी. की प्रमुख विपक्षी पार्टी शेख हसीना की आवामी लीग को हिन्दू मत ज्यादा मिलते थे। अत: हिन्दुओं को राजनीतिक विद्वेष का शिकार भी होना पड़ा। बी.एन.पी. आवामी लीग पर “भारत की एजेंट” होने का आरोप लगाती रही है और इसी वजह से वह हिन्दुओं को निशाना बनाने को सही ठहराती रही है। उसका मानना है कि हिन्दुओं के अपने धार्मिक तीज-त्योहार मनाने से बंगलादेश के इस्लामी चरित्र पर खतरा मंडराने लगा है। बी.एन.पी. के नेतृत्व वाले गठबंधन में चार में से दो-जमाते इस्लामी और इस्लामी एक्य जोट-कट्टर मजहबी तंजीमें हैं। जैसा कि अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने पाया है, ये तंजीमें ओसामा बिन लादेन की समर्थक हैं और बंगलादेश में तालिबान की तर्ज पर शासन चलाने की पैरवी करती रही हैं। बेगम खालिदा जिया की बी.एन.पी. का इनको सीधा समर्थन और इस्लामी कट्टरवाद की पैरवी और हिन्दू समाज पर उसके दुष्परिणाम, आज बंगलादेश में खुलेआम दिखते हैं।
बी.बी.सी. ने खबर दी थी कि मुस्लिम मजहबी स्कूल, जिन्हें मदरसा कहते हैं, दूसरे मत-पंथों के खिलाफ बच्चों के दिमाग में जहर भरते हैं। इसकी रपट में कहा गया, “हालांकि प्राइमरी स्तर पर अंग्रेजी, गणित और विज्ञान जैसे विषय तो रखे गए हैं, पर पाठक्रम में अब भी कुरान और मध्य एशियाई भाषाएं ही प्रमुख हैं। “पुराने छात्र तो बस यही पढ़ते हैं। पंद्रह साल का मोहम्मद जकारिया कुछ अलग ही किस्म का है। उसके पिता नारायणगंज के बाजार में कमीजें बेचते हैं और परिवार के पास पेट भरने लायक पैसा ही होता है।
मोहम्मद की तमन्ना मौलवी बनने की है। अपने एक कमरे के घर के बाहर बैठा मोहम्मद कहता है, “मैं इस्लाम का प्रचार करना चाहता हूं, मैं हिन्दुओं को मुसलमान बनाना चाहता हूं।”
8 सितम्बर, 2004 को द स्टेट्समैन ने भारतीय गुप्तचर संस्था “रॉ” के पूर्व अधिकारी बिभूति भूषण नंदी का एक लेख छापा था, जिसमें लिखा था, “2001 में बंगलादेश में चुनाव के बाद बी.एन.पी. और जमात के लोगों ने हिन्दुओं को खदेड़ बाहर करने का अभियान चलाया था। हत्या, लूट, फिरौती, दंगे और सामूहिक बलात्कार के रूप में दहशत फैलाई गई और बड़ी संख्या में हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर कर दिया गया।”
अक्तूबर, 2004 में द डेली स्टार की रपट थी कि बागेरहाट हिन्दू वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा संचालित एक प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र में एक हिन्दू शिक्षिका का बंदूक की नोंक पर सामूहिक बलात्कार किया गया। बलात्कारी बी.एन.पी. की बागेरहाट शाखा से जुड़े थे। इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। नवम्बर, 2004 में दैनिक संगबाद अखबार ने दिनाजपुर जिले में कानन बाला की यातना का समाचार छापा था। छह लोगों ने कानन बाला को उसके घर से निकालकर पेड़ के साथ बांध दिया, उसके मुंह में कपड़ा ठूंस कर प्रताड़ित किया गया। कानन बाला ने जब पानी मांगा तो उन अत्याचारियों ने उसके मुंह पर कथित पेशाब किया। उनमें से एक को पकड़ लिया गया, पांच खुले घूमते रहे। नवम्बर 2004 में ही डेली स्टार ने एक अन्य घटना की खबर छापी जिसमें धारमाई गांव के हिन्दुओं की पीड़ा थी। जमीन पर कब्जा करने आए 30 हमलावरों ने आठ हिन्दुओं को बुरी तरह मारा। पुलिस अब तक उन्हें पकड़ नहीं पाई है। ऐसी और इसी तरह की कितनी ही घटनाएं सिलसिलेवार रूप से इस रपट में दी गई हैं।
पाकिस्तान में भेदभाव:
1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान में हिन्दू आबादी कुल आबादी की लगभग एक चौथाई थी। उदाहरण के लिए, 1947 में कराची की आबादी 4,50,000 थी जिसमें 51 प्रतिशत हिन्दू थे और 42 प्रतिशत मुस्लिम। 1951 में कराची की आबादी बढ़कर 11.370 लाख थी जिसमें भारत से पलायन करके गए 6,00,000 मुस्लिम भी शामिल थे। 1951 में वहां 96 प्रतिशत मुस्लिम थे और 2 प्रतिशत हिन्दू। 1998 आते-आते पूरे पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या 1.60 प्रतिशत रह गई। ताजा जनसंख्या सर्वेक्षण में तो हिन्दुओं की और घटी हुई संख्या दिखेगी। हिन्दुओं का अपहरण तो अब वहां लाखों डालर का उद्योग जैसा बन गया है। पाकिस्तान का संविधान पांथिक स्वतंत्रता की बात करता है। लेकिन व्यवहार में इस स्वतंत्रता पर सरकार ने सीमाएं बांधी हुई हैं। चूंकि स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान ने खुद को इस्लामी गणतंत्र घोषित किया था, इस्लाम आज उस देश की सोच का केन्द्रीय तत्व बना हुआ है। यही वजह है कि पांथिक स्वतंत्रता कानून, सार्वजनिक आदेश और नैतिकता इस्लाम के आईने में देखी जाती है। इस्लाम या इसके पैगम्बर के खिलाफ किसी भी तरह का भाषण अथवा कृत्य बर्दाश्त नहीं किया जाता। संविधान की मांग है कि कुछ कानून इस्लाम की हदों के भीतर रहें। यह बात अमरीकी विदेश विभाग की अंतरराष्ट्रीय पांथिक स्वतंत्रता पर 2004 में जारी रपट में लिखी गई है।
अक्तूबर, 2004 में द डान अखबार में अमीर जलाल ने लिखा कि पाकिस्तान के सिंध सूबे में “अपहरण आज आम चलन बन गया है, जहां सामने दिखने वाले अपराधियों की बजाय उनकी भूमिका ज्यादा संदिग्ध है जो दिखाई नहीं देते।”
नवम्बर, 2004 में प्रकाशित एक रपट “सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले विवाह समारोहों में दावत पर पाबंदी सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखी” पाकिस्तान में हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों पर काफी रोशनी डालती है। रपट में सर्वोच्च न्यायालय का निष्कर्ष था कि दावत देना और धन का बढ़-चढ़कर रुतबा दिखाना गैर-इस्लामी है। सर्वोच्च न्यायालय का मानना था कि ज्यादा लोकप्रिय रीति रिवाज हिन्दू मूल के हैं और निकाह के इस्लामी विचार से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इस फैसले से साफ हो गया कि पाकिस्तान में हिन्दुओं का दर्जा “विदेशी” या “बाहरी” का है और उनकी विरासत को वहां के सामाजिक रूप-रंग के आवश्यक तत्व के रूप में नकार दिया गया है।
बी.बी.सी. की रपट “लाइफ एज ए मार्डन स्लेव इन पाकिस्तान”, में कहा गया था कि दक्षिण पाकिस्तान के सिंध सूबे में करीब 20 लाख लोग “बंधुआ मजदूर” के रूप में जमींदारों से बंधे हुए हैं। यह तो तब की बात है जबकि 12 साल पहले ही पाकिस्तान इस चलन पर रोक लगा चुका था। इस चलन में था कि जमींदार अपने मजदूरों को कर्जे में बांध देते थे। यह कर्जा भी हजारों रु. का होता था जो कामगारों द्वारा असल में लिए गए उधार से कहीं ज्यादा था और इस तरह वे उनकी गुलामी के लिए मजबूर कर दिए जाते थे। आज भी वहां यही हो रहा है। ज्यादातर कामगार हिन्दू हैं।
बी.बी.सी. के “स्लेवरी टुडे” कार्यक्रम में शांति नामक महिला ने बताया, “कई लोगों के साथ मेरा भी अपहरण किया गया था। एक छोटे कमरे में मुझे बंद कर दिया। फिर उस जमींदार ने, जिसने अपहरण किया था, मुझसे जबरदस्ती की। “शांति ने बताया कि जिस जमींदार के लिए उसका परिवार काम करता था, उसी ने उसका अपहरण किया था। उसने यह भी बताया कि अपहरण के समय वह दो माह की गर्भवती थी। उसने आगे कहा, “जमींदार ने कहा था कि जब वह उसको अपने यहां रख लेगा तभी उसके (शांति के) घर वाले लौटकर यहां आएंगे। उसने मुझसे बलात्कार किया और कहा कि क्योंकि अब उसका परिवार यहां खेत पर काम नहीं करता इसलिए उसे मेरा बलात्कार करने का हक है।” पाकिस्तान में ऐसे कई कानून और कायदे हैं जिनके जरिए वहां गैर-मुस्लिमों के साथ बहुत भेदभाव किया जाता है। कुफ्र-विरोधी कानून का सहारा लेकर पैगम्बर-मोहम्मद की आलोचना के आरोप में बिना मुकदमा चलाए लम्बे समय के लिए जेल में बंद कर दिया जाता है। पासपोर्ट पर मजहब लिखना आवश्यक है। 1979 का हुदूद अध्यादेश (जिना का अपराध, कजफ का अपराध, कोड़े लगाने की सजा का अनुपालन), 1984 का कानून-ए-शहादत आदेश और 1991 का कैसास व दियात अध्यादेश (धारा 306 सी) जैसे कानून विशेष रूप से विभेदक हैं।
भारत (जम्मू-कश्मीर) में जारी है जिहाद:
कारगिल पुनर्समीक्षा समिति की रपट के अनुसार इस पूर्व रियासत का कुल क्षेत्रफल 85,807 वर्ग मील है। इसमें से 30,160 वर्ग मील पर पाकिस्तान का कब्जा है, जिसमें से शाक्सगम घाटी का 2000 वर्ग मील का हिस्सा 1963 में उसने चीन को सीमा निपटारे (जिसे भारत स्वीकार नहीं करता) के तहत दे दिया है। लद्दाख में करीब 14,500 वर्ग मील क्षेत्र आज चीन के कब्जे में है। यह पूर्व रियासत आज पांच क्षेत्रों- कश्मीर, जम्मू, लद्दाख, तथाकथित आजाद कश्मीर और उत्तरी इलाकों से मिलकर बनी है। प्रशासनिक तौर पर कश्मीर को छह जिलों में बांटा गया है, जिनका क्षेत्रफल 6,157 वर्गमील है और आबादी 40 लाख से कुछ ऊपर। जम्मू क्षेत्र भी छह जिलों और 10,151 वर्ग मील का है, आबादी है 30.6 लाख। लद्दाख के दो जिले, लेह और कारगिल हैं, क्षेत्रफल 37,337 वर्ग मील है और आबादी 1,71,000।
जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने 3 लाख कश्मीरी हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर कर दिया। कश्मीरी अलगाववादी मुस्लिमों द्वारा वहां किए गए नस्लीय परिमार्जन के कारण हिन्दुओं को अपने घर-बार छोड़कर दर-दर भटकना पड़ रहा है। आज ये 3 लाख कश्मीरी हिन्दू अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं। दिल्ली, जम्मू आदि शहरों में विस्थापित शिविरों में जीवन बसर कर रहे हैं।
इतना ही नहीं, हजारों हिन्दू कत्ल कर दिए गए हैं और हजारों अन्य हिन्दू पुलिस व सेनाकर्मी आतंकवाद में मारे गए हैं। आज घाटी में हिन्दू न के बराबर हैं, सबको बाहर खदेड़ा जा चुका है।
मानवाधिकार संगठनों का रवैया:
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2003 की अपनी रपट में बंगलादेश के हिन्दुओं के बारे में बस इतना कहा- “सन् 2001 में बंगलादेश सरकार ने हिन्दुओं के विरुद्ध हमलों, बलात्कार, आगजनी की जांच का जो वायदा किया था, उसकी कोई सूचना सार्वजनिक नहीं की गई है। हालांकि प्रशासन ने अक्तूबर में तीज-त्योहार के मौके पर हिन्दुओं की सुरक्षा के इंतजाम किए थे। “हिन्दू समाज पर हमले, संबंधी 2001 की इस संस्था की रपट में हिन्दू-पीड़ा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया था, लेकिन महज तीन साल बाद की रपट में बिगड़ते हालातों के बावजूद हिन्दुओं की स्थिति पर सरसरी टिप्पणी के सिवाय कुछ नहीं था।
अंतरराष्ट्रीय पांथिक स्वतंत्रता पर 2004 में आई अमरीकी विदेश विभाग की रपट में बंगलादेश की परिस्थितियों का तीखा विश्लेषण है। इसके अनुसार वहां हालांकि आमतौर पर नागरिकों को “अपने धर्म-पंथ पर चलने की छूट है, पर पुलिस साधारणत: कानून-व्यवस्था बनाए रखने में ज्यादातर नाकाम रहती है और पांथिक अल्पसंख्यकों, जो अपराधों के शिकार हुए हैं, की मदद में ढीली रही है। “हिन्दुओं पर हमलों के लिए यह रपट “दो प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच कटुता” को दोषी ठहराती है। रपट में एक जगह कहा गया है कि सरकार ने “मत-पंथों के बीच समझ बढ़ाने के कुछ प्रयास किए हैं” और कि “सरकार ने दुर्गा पूजा, अक्तूबर 2003 का एक प्रमुख हिन्दू अवकाश दिन, को शांतिपूर्ण तरीके से मनाने में सहयोग दिया है।”
पाकिस्तान के संदर्भ में 2003 की एमनेस्टी इंटरनेशनल की रपट में हिन्दुओं के विरुद्ध हमलों का जिक्र तक नहीं था। उसमें केवल इतना उल्लेख था कि “ईसाई और शिया मुस्लिमों सहित पांथिक अल्पसंख्यकों की महिलाओं, बच्चों के प्रति अत्याचार की घटनाओं की अनदेखी की जाती रही। “एक अन्य मानवाधिकारी संगठन यू.एन.सी.आई.आर.एफ. की रपट ने अहमदियाओं, शियाओं और ईसाइयों की पांथिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की तो चर्चा की, हिन्दुओं का कहीं जिक्र तक नहीं किया।
दक्षिण एशिया में हिन्दुओं के विरुद्ध हो रहीं घटनाओं और दमन का आलम यह है कि कोई देश उनके पक्ष में आवाज उठाने से कतराता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्रूमन राइट्स वाच या अन्य सरकारी आयोग, जैसे अंतरराष्ट्रीय पांथिक स्वतंत्रता पर अमरीकी आयोग आदि हिन्दुओं के मानवाधिकारों की कोई परवाह नहीं करते। वे हिन्दुओं के दमन की तरफ आंखें मूंदे रखते हैं।
समय की मांग:
हिन्दू-अमरीकन फाउंडेशन ने अपनी रपट के निष्कर्ष में कहा कि बंगलादेश में हिन्दुओं की स्थिति पर तुरंत गौर करने की आवश्यकता है। वहां उनकी संख्या घटती जा रही है। पाकिस्तान से भी हिन्दुओं को सताए जाने की खबरें पूरी तरह नहीं आ पा रही हैं। अल्पसंख्यक का दर्जा उन्हें निशाने पर बनाए हुए है। हिन्दुओं की संख्या अब हाशिए पर पहुंचा दी गई है। इसी तरह भारत (जम्मू-कश्मीर) में कश्मीर घाटी को हिन्दू-विहीन कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर का “विवादित क्षेत्र” का दर्जा कश्मीरी हिन्दुओं की स्थिति को प्रभावित करता रहेगा।

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