Tuesday, 27 June 2017

 गांधियो ने तो  मुसलमानो को खुश करने की खातिर कभी इजरायल के साथ किसी भी तरह का कोई समबन्ध नही रखा ..
भारत जब थोड़े सालो के लिए इन गांधियो के चंगुल से मुक्त हुआ और पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री बने थे तब 1992 में भारत ने इजरायल के साथ राजनयिक समबन्ध स्थापित किये और दिल्ली व मुंबई में इजरायल के दूतावास खोलने की मंजूरी दी ...
भारत ने अब तक अपनी समस्त ताकत फिलिस्तीनी आतंकी यासिर अराफात के पीछे खर्च कर दी थी ...
यासिर अराफात को छींक भी आती थी तब वो भागकर दिल्ली चला आता था .. इंदिरा और राजीव उसके लिए पलकें बिछाए इंतजार में रहते थे ...
जब आतंकवादी यासिर अराफात ने फिलिस्तीन राष्ट्र की घोषणा की तो फिलिस्तीन को सबसे पहले मान्यता देने वाला देश 
सउदी अरब  नहीं,पाकिस्तान - नहीं,अफगानिस्तान  नहीं हिंदुस्तान था.....

 इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए सबसे पहले फिलिस्तीन को मान्यता दिया और 
 अराफात ने OIC  में कश्मीर को पाकिस्तान का अभिन्न भाग बताया और बोला कि पाकिस्तान जब चाहे, तब मेरे लड़ाके कश्मीर की आज़ादी के लिए लड़ेंगे. , जिस व्यक्ति को दुनिया के 103 देश आतंकवादी घोषित किये हो और जिसने 8 विमानों का अपहरण किया हो और  दस हज़ार से भी ज्यादा निर्दोष लोगो को मारा हो. ऐसे आतंकवादी यासिर अराफात को सबसे पहले भारत ने  अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार ने नवाजा..अराफात जैसे आतंकवादी को नेहरु शांति पुरस्कार (20 करोड़ रूपये और 7 किलो सोने से बना शील्ड) दिया और राजीव गाँधी ने उसको इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार (15 करोड़ और पाँच किलो सोने से बना शील्ड ) दिया. राजीव गाँधी ने तो उसको पूरे विश्व में घूमने के लिए बोईंग 747 गिफ्ट में दिया था....

आप सोचिये, 1983 मे , आज से करीब 34 साल पहले 190 करोड रूपये और 14 किलो सोने की क्या वैल्यू होगी??.....
 यही अराफात कश्मीर के मामले पर खुलकर पाकिस्तान के साथ हो गया और इसने घूम घूमकर पूरे इस्लामिक देशो मे कहा कि फिलिस्तीन और कश्मीर दोनों जगहों के मुसलमान गैर मुसलमानों के हाथो मारे जा रहे है. इसलिए पूरे मुस्लिम जगत को इन दोनों मामलो पर एकजुट होना चाहिए......हाय रे खाँग्रेस की सत्ता के लिए वोट बैंक की गंदी और घटिया राजनीती ।

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