मामला जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित है ...
भारत को दो भागों में बांटकर एक को भारत तो दूसरे को पाकिस्तान नाम दिया गया था। पाकिस्तान के बनते ही पाकिस्तान के कायदे आज़म के इशारों पर कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला बोल दिया था जिसके बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर में पहली जंग लड़ने की इज़ाज़त दे थी और भारतीय सेना ने एक के बाद एक कई बड़ी विजयों को हासिल करते हुए लगातार कश्मीर में पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों की टुकड़ियों को पीछे धकेलते हुए आगे बढती जा रही थी।
लेकिन तभी जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने किया था उसने न केवल सरदार वल्लभभाई पटेल को स्तब्ध कर दिया था बल्कि बाद में कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम का प्रमुख कारण बना और हिन्दुस्तान के लिए पिछले 69 सालों से भारत के लिए एक सर दर्द।सरदार वल्लभभाई पटेल आज़ादी के बाद असम का दौरा करना चाहते थे असम के आस-पास के कई जिलों को पूर्वी पाकिस्तान आज के बांग्लादेश में मिला दिया गया था ।ऐसे में सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने सभी कार्यक्रमों को रद्द कर सबसे पहले अपना असम का दौरा तय किया और वे वहां पहुंचे। असम में सरदार लगातार 4 दिनों तक रहे
सरदार की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर नेहरु संयुक्तराष्ट्र पहुँच गए –
भारत को दो भागों में बांटकर एक को भारत तो दूसरे को पाकिस्तान नाम दिया गया था। पाकिस्तान के बनते ही पाकिस्तान के कायदे आज़म के इशारों पर कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला बोल दिया था जिसके बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर में पहली जंग लड़ने की इज़ाज़त दे थी और भारतीय सेना ने एक के बाद एक कई बड़ी विजयों को हासिल करते हुए लगातार कश्मीर में पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों की टुकड़ियों को पीछे धकेलते हुए आगे बढती जा रही थी।
लेकिन तभी जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने किया था उसने न केवल सरदार वल्लभभाई पटेल को स्तब्ध कर दिया था बल्कि बाद में कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम का प्रमुख कारण बना और हिन्दुस्तान के लिए पिछले 69 सालों से भारत के लिए एक सर दर्द।सरदार वल्लभभाई पटेल आज़ादी के बाद असम का दौरा करना चाहते थे असम के आस-पास के कई जिलों को पूर्वी पाकिस्तान आज के बांग्लादेश में मिला दिया गया था ।ऐसे में सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने सभी कार्यक्रमों को रद्द कर सबसे पहले अपना असम का दौरा तय किया और वे वहां पहुंचे। असम में सरदार लगातार 4 दिनों तक रहे
सरदार की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर नेहरु संयुक्तराष्ट्र पहुँच गए –
इसी समय अच्छा अवसर जानकार प्रधानमंत्री नेहरु ने जम्मू-कश्मीर की समस्या को लेकर संयुक्तराष्ट्र संघ चले गए। नेहरु को यह अच्छी तरह से पता था कि यदि सरदार को इस बात की भनक भी लग गयी थी वे कभी भी इसकी न ही इज़ाज़त देंगे और न ही इसका वे समर्थन ही करेंगे और उनके (सरदार वल्लभभाई पटेल) के समर्थन के बगैर नेहरु के लिए केंद्र सरकार में पत्ता भी हिला पाना असंभव था। अतः उन्होंने ने सरदार की अनुपस्थित का फायदा उठाते हुए जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर संयुक्तराष्ट्र संघ की अदालत पहुँच गए।
जब सरदार अपने 4 दिनों के असम के प्रवास को ख़त्म कर दिल्ली वापस आये और उन्हें यह पता चला कि कि जवाहरलाल नेहरु ने उनकी अनुपस्थित का लाभ उठाते हुए ऐसा किया है तो वे एकदम स्तब्ध रह गए मानों उनके पैरों के नीचे से किसी जमीन ही खींच ली हो।
पूरी दुनिया में लौहपुरुष के नाम से प्रसिद्द ब्यक्ति जिसने दुनिया दारी के हर तूफ़ान का डट कर सामना किया था अंग्रेजों और मुस्लिम लीग के हर नापाक इरादे को नाकाम किया था आज वह सरदार एक दम हताश हो चुके थे। हताशा से भरे हुए गमगीन और दुखी मुद्रा में सरदार ने कहा कि, ‘जिले स्तर का एक सामान्य वकील भी यह जानता है कि यदि फरियादी के रूप में आप अदालत में जाकर खड़े होते है तो समग्र मुकदमा सिद्ध करने की जिम्मेदारी आपकी ही हो जाती है, आरोपी को तो बस इसे केवल नकार देना होता है।
सरदार ने आगे कहा कि, ‘जवाहरलाल ने इतनी जबरदस्त गलती की है कि है कि एक दिन वे बहुत पछतायेंगे और खून के आँशु रोयेगा।
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