Thursday, 1 June 2017

19 खरब 50 अरब 40 करोड़ का सालाना व्यापार बस हम सब को बीमार बनाने के लिऐ हो रहा है
बौद्धिक लड़ाई ना एक दिन में लड़ी जाती और ना जीती जाती, इस के लिए तो सैकड़ों साल लगते हैं और पीढियाँ की पीढियाँ खप जाती हैं। एक बौद्धिक लड़ाई है जैविक कृषि बनाम रसायनिक कृषि और अंत में विजय जैविक खेती की ही होनी है कंपनियां चाहे जो मर्जी कर लें।
बुद्धि का विकास शिक्षा से ही होता है और वो शिक्षा ही गलत दे दी जाए तो कोई कहाँ जा कर रोए। 
आप सभी गेहूँ व चावल तो खाते ही होंगे। आज इन दो फसलों के बारे में ही बात करुंगा। जब देश में कृषि विश्व विद्यालय नहीं थे तो जैविक कृषि ही होती थी, जब देश में वन विभाग नहीं थे तो जंगलों में अनेक प्रकार के देशी पेड़ पौधे थे, जब देश में पशुपालन विभाग नहीं था तो उत्तम नश्ल की गाय, अन्य पशु व विभिन्न प्रकार के पक्षी थे।
खैर आज बस गेहूँ और चावल। गेहुं का बीज आज हमें बाजार में मिलता है, उस पर अंग्रेजी भाषा में साफ साफ लिखा होता है कि यह गेहूँ खाने योग्य नहीं है, इस पर जहर की परत चढ़ाई गयी है। यह जहर युक्त गेहूँ का बीज किसान को करीब 1000/- ₹ में 50 किलो प्रति एकड़ बोने के लिए दिया जाता है। फिर बुआई के समय सुपर फास्फेट नामक जहर की 50 किलो की बोरी करीब 400/- ₹ कि थमा दी जाती है। गेहूँ के अंकुरित होते ही यूरिया की एक बोरी 350/- की तथा दूसरी सिंचाई के वक्त एक बोरी यूरिया और डालवा दी जाती है। 500 से 1000/- ₹ के खरपतवार व कीटनाशक डलवाया जाता है। जब गेहूँ पक जाता है तो सल्फास नामक जहर उस को सुरक्षित रखने के नाम पर डलवाया जाता है। कहने का मतलब है की किसान को पूरी तरह ठग कर उस को जहर युक्त बीज देने से लेकर गेहूँ को सुरक्षित रखने के उपाय तक कंपनी किसान से करीब तीन हजार रुपए प्रति एकड़ का जहर बेच जाती है।
अब चावल की बात करते हैं। चावल की 10 किलो की जहर से उपचारित पंजीरी प्रति एकड़ 400 से 500/- किसान को दी जाती है। पौध रोपण के साथ ही 3000/- की तीन बोरी डीएपी की डलवाई जाती हैं। बाद में एक बोरी यूरिया, एक से दो 500/- ₹ के खरपतवार नाशी जहर तथा तीन 1500/- ₹ के कीटनाशक जहर के छिडकाव करवाए जाते हैं। चावल कि फसल में भी कंपनी करीब 6000/- ₹ के जहर प्रति एकड़ डलवाने में सफल हो जाती है।
सिर्फ गेहूँ व चावल में जहर डलवाने के नाम पर कंपनी 9000/- ₹ प्रति एकड़ का सामान बेच जाती है।
भारत में 3946 लाख एकड़ कृषि भूमी है जिसमे से 2156 लाख सिंचित भूमी पर गेहूँ व चावल कि खेती होती है। 215600000 x 9000 = 1950400000000/- ₹ प्रति वर्ष किसान को बेवकूफ बनाकर आप को जहर युक्त खाना कंपनी तैयार करवाती हैं ताकि आप बीमार हों अगर आप बीमार नहीं हुए तो अंग्रेजी दवाई कैसे बिकेंगी?????
कितने किसान स्त्री पुरूष यह कीटनाशक, खरपतवार नाशक व सल्फास पी खा कर मरे हैं इस का आकडा आप को कहीं नहीं मिलेगा क्यों कि ज्यादातर परिवार इस की जानकारी थानों में नहीं देते।
किसान भाईयो नीम धतूरा और आक में अब भी वही गुण हैं। गोबर, गौमुत्र व लस्सी आप के घर से ही निकलता है। उस की ताकत पहचानों। उस से ही खाद व कीटनाशक तैयार करो। खुद के बीज बनाओ। इन कंपनियों के दुष्चक्र को हमें ही तोड़णा होगा।
अंत में अपने शहरी मित्रो से अपील करना चाहूंगा कि फैमिली डॉक्टर के साथ साथ एक फैमिली फार्मर भी रख लो। जैसा खाए अन्न वैसा होगा मन।
नोटः- 19 खरब 50 अरब 40 करोड़ ₹ तो सालाना गेहूँ व चावल को खराब करने के लिए खर्च किया जाता है। बाकी अन्न, फल व सब्जियों को खराब करने वाले पैसे की आप कल्पना कर सकते हैं।
साभार: शिव दर्शन मलिक

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