Friday 24 July 2015


वैद्यक विद्या
पाक विद्या की ही भाँती वैद्यक विद्या भी महिलाओं के लिए विशेष महत्त्व रखती है | प्रत्येक परिवार में कोई न कोई व्यक्ति किसी न किसी रोग से ग्रसित हो जाता है | इसके प्रत्येक छोटे छोटे रोग , बिमारी की चिकत्सा के लिए उसे चिकित्सक के पास ले जाना संभव नहीं होता | यदि छोटी छोटी बिमारी में चिकित्सक के पास जाया जावे तो बहुत सा धन तथा बहुत सा समय नष्ट तो होता ही है , साथ ही साथ अनेक प्रकार के भय भी पैदा हो जाते हैं | इस सब से बचने के लिए वेद ने अनेक प्रकार के घरेलू उपाय दिए हैं , जिनके प्रयोग से पारिवारिक परिचर्या से ही रोगी को उत्तम स्वास्थ्य मिल सकता है | इस लिए वेद का कहना है कि प्रत्येक महिला के लिए साधारण वैद्यक की शिक्षा से शिक्षित होनी चाहिए | अत: कुछ घरेलू उपचार की जानकारी हमारी महिलाओं के लिए होना आवश्यक है | आओ वेद में पारिवारिक चिकित्सा का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करें |
वेद में आदर्श स्त्री शिक्षा का वर्णन – २७
वैद्यक शिक्षा भी नारी के लिए आवश्यक
डा. अशोक आर्य
नारी ने परिवार चलाना होता है , परिवार का पालन करना होता है और परिवार का रक्षण भी करना होता है | पालन और रक्षण के लिए अनेक बार इस प्रकार की अवस्थाएं आ जाती हैं जब कोई परिजन रुग्ण हो जाता है | इस रुग्ण परिजन का आरम्भिक उपचार घर से ही माताएं आरम्भ कर देती हैं ताकि उसका रोग रुके नहीं तो कम से कम बढे भी नहीं | साधारणतया माताएं इस प्रकार के घरेलु उपचार करती हैं और उससे रोग के इस प्रकार के निदान भी करने में सफल होती हैं कि अनेक बार बड़े बड़े अनुभवी चिकित्सक भी आश्चर्य से चकित हो जाते हैं | इस लिए ही वेद का आदेश है कि महिलाओं को वैद्यक विधा का भी ज्ञान होना आवशयक होता है | इस सम्बन्ध में ऋग्वेद तथा यजुर्वे में अनेक मंत्र मिलते हैं | वेद के इन मंत्रों में से एक मन्त्र अवलोकनीय है :-
याSओषधी: सोमाराज्ञीर्बह्वी: शाताचाक्षण : |

तासामसि त्वमुत्तमारं कामाय श ्ॅहृदे || यजुर्वेद १२.९२ ||
इस मन्त्र के द्वारा यजुर्वेद ने स्त्रियों के लिए स्पष्ट संकेत करते हुए कहा है कि स्त्रियों को अन्य शिक्षाओं के अतिरिक्त वैद्यक की शिक्षा में भी पारंगत होना चाहिए ताकि घर के किसी सदस्य पर जब भी कभी स्वास्थ्य सम्बंधी संकट आवे तो उस का यथा समय तथा यथाचित उपचार किया जा सके |
मन्त्र में एक शब्द आया है “ उत्तमा ” | इस उत्तमा शब्द से अभिप्राय: विदुषी स्त्री से लिया गया है | विदुषी स्त्री उसे कहा जाता है जो कल्याणकारिणी हो तथा जो ह्रदय के लिए समर्थ इच्छा सिद्धि के योग्य होती है |
प्रश्न उठता है यह कल्याणकारिणी महिला कौन हो सकती है ? इसके उत्तर के लिए हम कह सकते हैं कि वह महिला जो अपने परिजनों और पास - पडौस के लिए सदा सुख की कामना करे तथा उनके लिए सदा सुख के उपाय करे , उसे हम कल्याणकारिणी महिला कह सकते हैं |
इस से स्पष्ट होता है कि सब के कल्याण के उपाय वह महिला जानती हो | यदि वह वैद्यक नहीं जानती तो सब के कल्याण का उपाय वह कैसे कर सकती है ? रोग से ग्रसित व्यक्ति कभी भी अपने आप को सुखी नहीं मान सकता | रोग से ग्रसित व्यक्ति कभी भी विश्राम की अवस्था में नहीं रह सकता | यदि वह कुछ भी काम नहीं कर रहा , केवल बिस्तर पर है , तो भी वह दु:खों से इतना दु:खी होता है कि एक क्षण के लिए भी वह इस विश्राम का आनंद नहीं उठा पाता | सदा रोता रहता है , सदा तड़पता रहता है | सदा चिंतित रहते हुए परमपिता परमात्मा के लिए भी बुरे शब्द बोलने लगता है | इस प्रकार के व्यक्ति को यदि तत्काल चिकित्सा देते हुए उसे स्वास्थ्य लाभ न मिले तो उस के कष्ट निरंतर बढ़ते चले जाते हैं | इन कष्टों को न सहते हुए अनेक बार उसकी मृत्यु भी हो जाती है |
इस सब के निराकार के उपाय यदि माता पत्नी अथवा घर की कोई महिला नहीं जानती तो इस प्रकार के रोगी की तत्काल चिकित्सा तो क्या उसे प्राथमिक उपचार तक नहीं मिल पाता तथा उसका रोग तेजी से बढ़ता ही चला जाता है | रोग की भयंकरता अनेक बार उसकी मृत्यु का कारण भी बन जाती है | हमारी विदुषी माताएं प्राचीन काल से ही अपने

जीवन को वेदानुसार चलाती रही हैं , वेद के आदेशों को अपने जीवन का अंग बनाते हुए तदनुरूप कार्य करती रही हैं | इस कारण परिवारों में तथा परिवार के किसी भी सदस्य को तो क्या अपने अडौस – पडौस के किसी भी व्यक्ति को वह कष्ट न आने देती थीं और यदि कभी किसी को कोई कष्ट आ भी जाता था तो वह अपने प्रयास अथवा उपचार से उसके सब कष्टों का निराकरण कर उसका कल्याण करती थी | इसलिए ही माता को कल्याणकारिणी कहा गया है क्योंकि वह वेदानुसार सब विद्याओं को ग्रहण करती थीं यहाँ तक की वैद्यक को भी जानती थीं |
हमारे परिवारों पर हम यदि दृष्टि डालें तो आज भी हमारे परिवारों में इस प्रकार की महिलाएं हैं जो वेद को तो नहीं जानतीं किन्तु वेद की इस शिक्षा को आज भी जानती हैं कि वैद्यक शिक्षा महिलाओं के पास होनी चाहिए | इस बात को वह स्वयं ही ग्रहण किये हुए हैं और जब भी कभी परिवार में किसी को कोई रोग हो जाता है तो वह कुछ घरेलु उपचार से ही उसे ठीक कर देती हैं | विशेष रूप से बाल रोगों में तो यह महिलाएं पारंगत है | इस प्रकार पास – पडौस की महिलाएं अपने बच्चों का उपचार इन माताओं से कराती हैं | इससे बच्चे को तत्काल स्वास्थ्य लाभ तो होता है साथ ही धन भी व्यय नहीं करना होता क्योंकि यह माताएं नि:शुल्क उपचार करती हैं | इस कारण ही हम कहते हैं कि हमारी यह माताएं कल्याणकारी होती हैं तथा कल्याणकारी होने के साथ ही साथ यह ह्रदय के लिए समर्थ इच्छा सिद्धि की शक्ति से योग्य होती हैं | इस प्रकार की चिकित्यीय विद्या से निपुण महिला से प्रार्थना है कि वह अपने परिवार के साथ साथ अन्यों का भी उपचार करे तथा औशध के प्रयोग , बनाने की विधि आदि का उपदेश भी करे |
याजुर्वेद्भाष्य में स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इस मन्त्र का इस प्रकार अर्थ किया है :-
“ स्त्रियों को चाहिए ओषधि विद्या का ग्रहण अवश्य करें | क्योंकि इसके बिना पूर्ण कामना सुख प्राप्ति और रोगों की निवृति कभी नहीं हो सकती ”| इस प्रकार स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी इस मन्त्र के अर्थ के द्वारा यह स्पष्ट संकेत किया है कि स्त्रियों को ओषध विधा का ज्ञान अवश्य ही होना चाहिए क्योंकि इसके बिना कोई कामना पूर्ण न होगी तथा कोई सुख नहीं मिल सकेगा | इसके बिना रोगों की निवृति भी नहीं हो सकेगी | इसलिए महिलाओं के लिए चिकित्स्यीय ज्ञान का होना आवश्यक है और इस ज्ञान को पाने

के लिए महिलाओं के लिए आवश्यक है कि वह वेद की शरण में जावे, वेद का स्वाध्याय करे | यदि स्वयं वेद का यह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकतीं तो इसे पाने के लिए वह किसी आचार्य की शरण में जावे , किसी गुरुकुल में जाकर गुरु के चरणों में बैठने का अवसर प्राप्त करे अथवा किसी स्कूल व कालेज के अध्यापक अथवा प्राध्यापक के चरणों में बैठ कर वेद के इस चिक्स्यीय ज्ञान को प्राप्त करके जन कल्याण के कार्यों में लगे तथा दूसरों को भी इस ज्ञान की प्राप्ति का उपदेश दे |
वैद्यक विद्या
पाक विद्या की ही भाँती वैद्यक विद्या भी महिलाओं के लिए विशेष महत्त्व रखती है | प्रत्येक परिवार में कोई न कोई व्यक्ति किसी न किसी रोग से ग्रसित हो जाता है | इसके प्रत्येक छोटे छोटे रोग , बिमारी की चिकत्सा के लिए उसे चिकित्सक के पास ले जाना संभव नहीं होता | यदि छोटी छोटी बिमारी में चिकित्सक के पास जाया जावे तो बहुत सा धन तथा बहुत सा समय नष्ट तो होता ही है , साथ ही साथ अनेक प्रकार के भय भी पैदा हो जाते हैं | इस सब से बचने के लिए वेद ने अनेक प्रकार के घरेलू उपाय दिए हैं , जिनके प्रयोग से पारिवारिक परिचर्या से ही रोगी को उत्तम स्वास्थ्य मिल सकता है | इस लिए वेद का कहना है कि प्रत्येक महिला के लिए साधारण वैद्यक की शिक्षा से शिक्षित होनी चाहिए | अत: कुछ घरेलू उपचार की जानकारी हमारी महिलाओं के लिए होना आवश्यक है | आओ वेद में पारिवारिक चिकित्सा का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करें |
वेद में आदर्श स्त्री शिक्षा का वर्णन – २७
वैद्यक शिक्षा भी नारी के लिए आवश्यक
डा. अशोक आर्य
नारी ने परिवार चलाना होता है , परिवार का पालन करना होता है और परिवार का रक्षण भी करना होता है | पालन और रक्षण के लिए अनेक बार इस प्रकार की अवस्थाएं आ जाती हैं जब कोई परिजन रुग्ण हो जाता है | इस रुग्ण परिजन का आरम्भिक उपचार घर से ही माताएं आरम्भ कर देती हैं ताकि उसका रोग रुके नहीं तो कम से कम बढे भी नहीं | साधारणतया माताएं इस प्रकार के घरेलु उपचार करती हैं और उससे रोग के इस प्रकार के निदान भी करने में सफल होती हैं कि अनेक बार बड़े बड़े अनुभवी चिकित्सक भी आश्चर्य से चकित हो जाते हैं | इस लिए ही वेद का आदेश है कि महिलाओं को वैद्यक विधा का भी ज्ञान होना आवशयक होता है | इस सम्बन्ध में ऋग्वेद तथा यजुर्वे में अनेक मंत्र मिलते हैं | वेद के इन मंत्रों में से एक मन्त्र अवलोकनीय है :-
याSओषधी: सोमाराज्ञीर्बह्वी: शाताचाक्षण : |

तासामसि त्वमुत्तमारं कामाय श ्ॅहृदे || यजुर्वेद १२.९२ ||
इस मन्त्र के द्वारा यजुर्वेद ने स्त्रियों के लिए स्पष्ट संकेत करते हुए कहा है कि स्त्रियों को अन्य शिक्षाओं के अतिरिक्त वैद्यक की शिक्षा में भी पारंगत होना चाहिए ताकि घर के किसी सदस्य पर जब भी कभी स्वास्थ्य सम्बंधी संकट आवे तो उस का यथा समय तथा यथाचित उपचार किया जा सके |
मन्त्र में एक शब्द आया है “ उत्तमा ” | इस उत्तमा शब्द से अभिप्राय: विदुषी स्त्री से लिया गया है | विदुषी स्त्री उसे कहा जाता है जो कल्याणकारिणी हो तथा जो ह्रदय के लिए समर्थ इच्छा सिद्धि के योग्य होती है |
प्रश्न उठता है यह कल्याणकारिणी महिला कौन हो सकती है ? इसके उत्तर के लिए हम कह सकते हैं कि वह महिला जो अपने परिजनों और पास - पडौस के लिए सदा सुख की कामना करे तथा उनके लिए सदा सुख के उपाय करे , उसे हम कल्याणकारिणी महिला कह सकते हैं |
इस से स्पष्ट होता है कि सब के कल्याण के उपाय वह महिला जानती हो | यदि वह वैद्यक नहीं जानती तो सब के कल्याण का उपाय वह कैसे कर सकती है ? रोग से ग्रसित व्यक्ति कभी भी अपने आप को सुखी नहीं मान सकता | रोग से ग्रसित व्यक्ति कभी भी विश्राम की अवस्था में नहीं रह सकता | यदि वह कुछ भी काम नहीं कर रहा , केवल बिस्तर पर है , तो भी वह दु:खों से इतना दु:खी होता है कि एक क्षण के लिए भी वह इस विश्राम का आनंद नहीं उठा पाता | सदा रोता रहता है , सदा तड़पता रहता है | सदा चिंतित रहते हुए परमपिता परमात्मा के लिए भी बुरे शब्द बोलने लगता है | इस प्रकार के व्यक्ति को यदि तत्काल चिकित्सा देते हुए उसे स्वास्थ्य लाभ न मिले तो उस के कष्ट निरंतर बढ़ते चले जाते हैं | इन कष्टों को न सहते हुए अनेक बार उसकी मृत्यु भी हो जाती है |
इस सब के निराकार के उपाय यदि माता पत्नी अथवा घर की कोई महिला नहीं जानती तो इस प्रकार के रोगी की तत्काल चिकित्सा तो क्या उसे प्राथमिक उपचार तक नहीं मिल पाता तथा उसका रोग तेजी से बढ़ता ही चला जाता है | रोग की भयंकरता अनेक बार उसकी मृत्यु का कारण भी बन जाती है | हमारी विदुषी माताएं प्राचीन काल से ही अपने

जीवन को वेदानुसार चलाती रही हैं , वेद के आदेशों को अपने जीवन का अंग बनाते हुए तदनुरूप कार्य करती रही हैं | इस कारण परिवारों में तथा परिवार के किसी भी सदस्य को तो क्या अपने अडौस – पडौस के किसी भी व्यक्ति को वह कष्ट न आने देती थीं और यदि कभी किसी को कोई कष्ट आ भी जाता था तो वह अपने प्रयास अथवा उपचार से उसके सब कष्टों का निराकरण कर उसका कल्याण करती थी | इसलिए ही माता को कल्याणकारिणी कहा गया है क्योंकि वह वेदानुसार सब विद्याओं को ग्रहण करती थीं यहाँ तक की वैद्यक को भी जानती थीं |
हमारे परिवारों पर हम यदि दृष्टि डालें तो आज भी हमारे परिवारों में इस प्रकार की महिलाएं हैं जो वेद को तो नहीं जानतीं किन्तु वेद की इस शिक्षा को आज भी जानती हैं कि वैद्यक शिक्षा महिलाओं के पास होनी चाहिए | इस बात को वह स्वयं ही ग्रहण किये हुए हैं और जब भी कभी परिवार में किसी को कोई रोग हो जाता है तो वह कुछ घरेलु उपचार से ही उसे ठीक कर देती हैं | विशेष रूप से बाल रोगों में तो यह महिलाएं पारंगत है | इस प्रकार पास – पडौस की महिलाएं अपने बच्चों का उपचार इन माताओं से कराती हैं | इससे बच्चे को तत्काल स्वास्थ्य लाभ तो होता है साथ ही धन भी व्यय नहीं करना होता क्योंकि यह माताएं नि:शुल्क उपचार करती हैं | इस कारण ही हम कहते हैं कि हमारी यह माताएं कल्याणकारी होती हैं तथा कल्याणकारी होने के साथ ही साथ यह ह्रदय के लिए समर्थ इच्छा सिद्धि की शक्ति से योग्य होती हैं | इस प्रकार की चिकित्यीय विद्या से निपुण महिला से प्रार्थना है कि वह अपने परिवार के साथ साथ अन्यों का भी उपचार करे तथा औशध के प्रयोग , बनाने की विधि आदि का उपदेश भी करे |
याजुर्वेद्भाष्य में स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इस मन्त्र का इस प्रकार अर्थ किया है :-
“ स्त्रियों को चाहिए ओषधि विद्या का ग्रहण अवश्य करें | क्योंकि इसके बिना पूर्ण कामना सुख प्राप्ति और रोगों की निवृति कभी नहीं हो सकती ”| इस प्रकार स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी इस मन्त्र के अर्थ के द्वारा यह स्पष्ट संकेत किया है कि स्त्रियों को ओषध विधा का ज्ञान अवश्य ही होना चाहिए क्योंकि इसके बिना कोई कामना पूर्ण न होगी तथा कोई सुख नहीं मिल सकेगा | इसके बिना रोगों की निवृति भी नहीं हो सकेगी | इसलिए महिलाओं के लिए चिकित्स्यीय ज्ञान का होना आवश्यक है और इस ज्ञान को पाने

के लिए महिलाओं के लिए आवश्यक है कि वह वेद की शरण में जावे, वेद का स्वाध्याय करे | यदि स्वयं वेद का यह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकतीं तो इसे पाने के लिए वह किसी आचार्य की शरण में जावे , किसी गुरुकुल में जाकर गुरु के चरणों में बैठने का अवसर प्राप्त करे अथवा किसी स्कूल व कालेज के अध्यापक अथवा प्राध्यापक के चरणों में बैठ कर वेद के इस चिक्स्यीय ज्ञान को प्राप्त करके जन कल्याण के कार्यों में लगे तथा दूसरों को भी इस ज्ञान की प्राप्ति का उपदेश दे |

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