अरून शुक्ला, Kiran Kumar और 2 अन्य लोग के साथ
5 घंटे ·
सन 1666 का समय था और इस्लामिक राक्षस औरंगजेब के अत्याचारोँ से हिँदू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरोँ को तोङा जा रहा था, हिँदू स्त्रियोँ की ईज्जत लूटकर उन्हेँ मुसलमानी बना दिया जाता था। औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिँदू जनता को मथते हुए बढते जा रहे थे। हिँदुओँ पर सिर्फ इसलिए अत्याचार किए जाते थे क्योँकि वे हिँदू थे। औरंगजेब अपने ही जैसे क्रूर लोगोँ को अपनी सेना मेँ उच्च पद देकर हिँदुस्तान को दारुल हरब से दारुल इस्लाम मेँ तब्दील करने के अपने सपने की तरफ तेजी से बढता जा रहा था। हिँदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया. अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला। सिनसिनी गाँव के सरदार गोकुल सिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया, मुग़ल सैनिकों ने लूटमार से लेकर किसानों के ढोर-डंगर तक खोलने शुरू कर दिए और संघर्ष शुरू हो गयाl तभी औरंगजेब का मुगलिया शैतानी फरमान आया - "काफ़िरों के मन्दिर गिरा दिए जाएं"। फलत: ब्रज क्षेत्र के कई अति प्राचीन मंदिरों और मठों का विनाश कर दिया गयाl कुषाण और गुप्त कालीन निधि, इतिहास की अमूल्य धरोहरोँ को तहस-नहस कर दिया गया। अब्दुन्नवी और उसके सैनिक हिँदू वेश मेँ नगर मेँ घूमते थे और मौका पाकर औरतोँ का अपहरण करके भाग जाते थे। अब जुल्म की इंतेहा हो चुकी थी। तभी दिल्ली के सिँहासन के नाक तले समरवीर धर्मपरायण जाट योद्धा #गोकुला जाट और उसकी किसान सेना ने आततायी औरंगजेब को हिँदुत्व की ताकत का अहसास दिलाया। मई 1669 मेँ अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया और उस समय वीर गोकुला गाँव मेँ ही था। भयंकर युद्ध हुआ लेकिन इस्लामी शैतान अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर जाटोँ के सामने टिक ना पाई और सारे गाजर-मूली की तरह काट दिए गए, मुगलोँ की सदाबद छावनी जला दी गई। उस अत्याचारी अब्दुन्नवी की चीखेँ दिल्ली की आततायी सल्तनत को भी सुनाई दी थी। मुगलोँ की जलती छावनी के धुँए ने औरंगजेब को अंदर तक हिलाकर रख दिया। औरंगजेब इसलिए भी डर गया था क्योँकि गोकुला की सेना मेँ जाटोँ के साथ गुर्जर, अहीर, ठाकुर, मेव इत्यादि भी थे। इस विजय ने मृतप्राय हिँदू समाज मेँ नए प्राण फूँक दिए। औरंगजेब ने सैफ शिकन खाँ को मथुरा का नया फौजदार नियुक्त किया और उसके साथ रदांदाज खान को गोकुल का सामना करने के लिए भेजा। लेकिन असफल रहने पर औरंगजेब ने महावीर गोकुला को संधि प्रस्ताव भेजा। गोकुला ने औरंगजेब का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया क्योँकि औरंगजेब कोई सत्ता या जागीरदारी के लिए नहीँ बल्कि धर्मरक्षा के लिए लङ रहा था और औरंगजेब के साथ संधि करने के बाद ये कार्य असंभव था। गोकुल ने औरंगजेब का उपहास उङाते हुए कहा कि "अपनी लङकी दे जाओ हम तुम्हेँ माफ कर देँगे।" अब औरंगजेब दिल्ली से चलकर खुद आया गोकुल से लङने के लिए। औरंगजेब ने मथुरा मेँ अपनी छावनी बनाई और अपने सेनापति हसन अली खान को एक मजबूत एवं विशाल सेना के साथ मुरसान भेजा। ग्रामीण रबी की बुवाई मेँ लगे थे तो हसन अली खाँ ने ने गोकुला की सेना की तीन गढियोँ/गाँवोँ रेवाङा, चंद्ररख और सरकरु पर सुबह के वक्त अचानक धावा बोला। औरंगजेब की शाही तोपोँ के सामने किसान योद्धा अपने मामूली हथियारोँ के सहारे ज्यादा देर तक टिक ना पाए और जाटोँ की पराजय हुई। इस जीत से उत्साहित औरंगजेब ने अब सीधा गोकुला से टकराने का फैसला किया। औरंगजेब के साथ उसके कई फौजदार और उसके गुलाम कुछ हिँदू राजा भी थे। वीर गोकुला के विरुद्ध औरंगजेब का ये अभियान शिवाजी जैसे महान राजाओँ के विरुद्ध छेङे गए अभियान से भी विशाल था। औरंगजेब की तोपोँ, धर्नुधरोँ, हाथियोँ से सुसज्जित विशाल सेना और गोकुला की किसानोँ की 20000 हजार की सेना मेँ तिलपत का भयंकर युद्ध छिङ गया। 4 दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और गोकुल की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढंगे व घरेलू हथियारोँ के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारोँ से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पङ रही थी। इस लङाई मेँ सिर्फ पुरुषोँ ने ही नहीँ बल्कि उनकी चौधरानियोँ ने भी पराक्रम दिखाया था। मनूची नामक यूरोपिय इतिहासकार ने जाटोँ और उनकी चौधरानियोँ के पराक्रम का उल्लेख करते हुए लिखा है कि "अपनी सुरक्षा के लिए ग्रामीण कंटीले झाडियों में छिप जाते या अपनी कमजोर गढ़ियों में शरण लेते, स्त्रियां भाले और तीर लेकर अपने पतियों के पीछे खड़ी हो जातीं। जब पति अपने बंदूक को दाग चुका होता, पत्नी उसके हाथ में भाला थमा देती और स्वयं बंदूक को भरने लगती थी । इस प्रकार वे उस समय तक रक्षा करते थे,जब तक कि वे युद्ध जारी रखने में बिल्कुल असमर्थ नहीं हो जाते थे ।
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सन 1666 का समय था और इस्लामिक राक्षस औरंगजेब के अत्याचारोँ से हिँदू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरोँ को तोङा जा रहा था, हिँदू स्त्रियोँ की ईज्जत लूटकर उन्हेँ मुसलमानी बना दिया जाता था। औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिँदू जनता को मथते हुए बढते जा रहे थे। हिँदुओँ पर सिर्फ इसलिए अत्याचार किए जाते थे क्योँकि वे हिँदू थे। औरंगजेब अपने ही जैसे क्रूर लोगोँ को अपनी सेना मेँ उच्च पद देकर हिँदुस्तान को दारुल हरब से दारुल इस्लाम मेँ तब्दील करने के अपने सपने की तरफ तेजी से बढता जा रहा था। हिँदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया. अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला। सिनसिनी गाँव के सरदार गोकुल सिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया, मुग़ल सैनिकों ने लूटमार से लेकर किसानों के ढोर-डंगर तक खोलने शुरू कर दिए और संघर्ष शुरू हो गयाl तभी औरंगजेब का मुगलिया शैतानी फरमान आया - "काफ़िरों के मन्दिर गिरा दिए जाएं"। फलत: ब्रज क्षेत्र के कई अति प्राचीन मंदिरों और मठों का विनाश कर दिया गयाl कुषाण और गुप्त कालीन निधि, इतिहास की अमूल्य धरोहरोँ को तहस-नहस कर दिया गया। अब्दुन्नवी और उसके सैनिक हिँदू वेश मेँ नगर मेँ घूमते थे और मौका पाकर औरतोँ का अपहरण करके भाग जाते थे। अब जुल्म की इंतेहा हो चुकी थी। तभी दिल्ली के सिँहासन के नाक तले समरवीर धर्मपरायण जाट योद्धा #गोकुला जाट और उसकी किसान सेना ने आततायी औरंगजेब को हिँदुत्व की ताकत का अहसास दिलाया। मई 1669 मेँ अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया और उस समय वीर गोकुला गाँव मेँ ही था। भयंकर युद्ध हुआ लेकिन इस्लामी शैतान अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर जाटोँ के सामने टिक ना पाई और सारे गाजर-मूली की तरह काट दिए गए, मुगलोँ की सदाबद छावनी जला दी गई। उस अत्याचारी अब्दुन्नवी की चीखेँ दिल्ली की आततायी सल्तनत को भी सुनाई दी थी। मुगलोँ की जलती छावनी के धुँए ने औरंगजेब को अंदर तक हिलाकर रख दिया। औरंगजेब इसलिए भी डर गया था क्योँकि गोकुला की सेना मेँ जाटोँ के साथ गुर्जर, अहीर, ठाकुर, मेव इत्यादि भी थे। इस विजय ने मृतप्राय हिँदू समाज मेँ नए प्राण फूँक दिए। औरंगजेब ने सैफ शिकन खाँ को मथुरा का नया फौजदार नियुक्त किया और उसके साथ रदांदाज खान को गोकुल का सामना करने के लिए भेजा। लेकिन असफल रहने पर औरंगजेब ने महावीर गोकुला को संधि प्रस्ताव भेजा। गोकुला ने औरंगजेब का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया क्योँकि औरंगजेब कोई सत्ता या जागीरदारी के लिए नहीँ बल्कि धर्मरक्षा के लिए लङ रहा था और औरंगजेब के साथ संधि करने के बाद ये कार्य असंभव था। गोकुल ने औरंगजेब का उपहास उङाते हुए कहा कि "अपनी लङकी दे जाओ हम तुम्हेँ माफ कर देँगे।" अब औरंगजेब दिल्ली से चलकर खुद आया गोकुल से लङने के लिए। औरंगजेब ने मथुरा मेँ अपनी छावनी बनाई और अपने सेनापति हसन अली खान को एक मजबूत एवं विशाल सेना के साथ मुरसान भेजा। ग्रामीण रबी की बुवाई मेँ लगे थे तो हसन अली खाँ ने ने गोकुला की सेना की तीन गढियोँ/गाँवोँ रेवाङा, चंद्ररख और सरकरु पर सुबह के वक्त अचानक धावा बोला। औरंगजेब की शाही तोपोँ के सामने किसान योद्धा अपने मामूली हथियारोँ के सहारे ज्यादा देर तक टिक ना पाए और जाटोँ की पराजय हुई। इस जीत से उत्साहित औरंगजेब ने अब सीधा गोकुला से टकराने का फैसला किया। औरंगजेब के साथ उसके कई फौजदार और उसके गुलाम कुछ हिँदू राजा भी थे। वीर गोकुला के विरुद्ध औरंगजेब का ये अभियान शिवाजी जैसे महान राजाओँ के विरुद्ध छेङे गए अभियान से भी विशाल था। औरंगजेब की तोपोँ, धर्नुधरोँ, हाथियोँ से सुसज्जित विशाल सेना और गोकुला की किसानोँ की 20000 हजार की सेना मेँ तिलपत का भयंकर युद्ध छिङ गया। 4 दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और गोकुल की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढंगे व घरेलू हथियारोँ के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारोँ से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पङ रही थी। इस लङाई मेँ सिर्फ पुरुषोँ ने ही नहीँ बल्कि उनकी चौधरानियोँ ने भी पराक्रम दिखाया था। मनूची नामक यूरोपिय इतिहासकार ने जाटोँ और उनकी चौधरानियोँ के पराक्रम का उल्लेख करते हुए लिखा है कि "अपनी सुरक्षा के लिए ग्रामीण कंटीले झाडियों में छिप जाते या अपनी कमजोर गढ़ियों में शरण लेते, स्त्रियां भाले और तीर लेकर अपने पतियों के पीछे खड़ी हो जातीं। जब पति अपने बंदूक को दाग चुका होता, पत्नी उसके हाथ में भाला थमा देती और स्वयं बंदूक को भरने लगती थी । इस प्रकार वे उस समय तक रक्षा करते थे,जब तक कि वे युद्ध जारी रखने में बिल्कुल असमर्थ नहीं हो जाते थे ।
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चीन में मुसलमानो के लिए स्पेशल कानुन
१} अपने नाम के आगे मोहम्मद से पहले माओ लगाना पड़ेगा|
२} धर्म परिवर्तन के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक है | (जो की मिलनी लगभग असम्भव है)
३} मस्जिद बनाने के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक है | जो की मिलनी लगभग असम्भव है अगर मिल भी गइ तो बनने के बाद वो आपको एक बौद्ध मंदिर ही नजर आयेगी |
४} किसी भी सार्वजनिक स्थान पर या किसी खुले स्थान पर जहां से की कोइ देख सके आपको, आप नमाज नहीं पढ सकते है |
५} लाउड स्पिकर से अजान नही दे सकते यानी मस्जिद पर लाउड स्पिकर नही लगा सकते
६} एक से अधिक बच्चे पैदा नहीं कर सकते
७} रमजान के महीने में रोजा रखने पर पुर्ण प्रतिबंध
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चीन में मुसलमानो के लिए स्पेशल कानुन
१} अपने नाम के आगे मोहम्मद से पहले माओ लगाना पड़ेगा|
२} धर्म परिवर्तन के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक है | (जो की मिलनी लगभग असम्भव है)
३} मस्जिद बनाने के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक है | जो की मिलनी लगभग असम्भव है अगर मिल भी गइ तो बनने के बाद वो आपको एक बौद्ध मंदिर ही नजर आयेगी |
४} किसी भी सार्वजनिक स्थान पर या किसी खुले स्थान पर जहां से की कोइ देख सके आपको, आप नमाज नहीं पढ सकते है |
१} अपने नाम के आगे मोहम्मद से पहले माओ लगाना पड़ेगा|
२} धर्म परिवर्तन के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक है | (जो की मिलनी लगभग असम्भव है)
३} मस्जिद बनाने के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक है | जो की मिलनी लगभग असम्भव है अगर मिल भी गइ तो बनने के बाद वो आपको एक बौद्ध मंदिर ही नजर आयेगी |
४} किसी भी सार्वजनिक स्थान पर या किसी खुले स्थान पर जहां से की कोइ देख सके आपको, आप नमाज नहीं पढ सकते है |
६} एक से अधिक बच्चे पैदा नहीं कर सकते
७} रमजान के महीने में रोजा रखने पर पुर्ण प्रतिबंध
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