Monday, 20 July 2015

प्रश्न:-क्या कुतुबमीनार कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया?
उत्तर:-नहीं। जो लोग अरब और इराक में एक छोटा सा घर न बना सके। वो क्या ताजमहल महल और कुतुबमीनार बनाएगे। अगर ये कलाकार होते तो अपने देश में ये बनाते।हिन्दुओ के देश भारत में नहीं। यही भारत में इनकी कलाकारी न जागती। ये सिर्फ लुटेरे थे। सारे बड़े राजमहल हिन्दू (आर्य) राजपूतो ने बनवाए । इतिहासकारो ने कुतुबुद्दीन ऐबक को क़ुतुब मीनार का निर्माता बना दिया। जबकि ऐसी आश्चर्यजनक,विशाल,सूंदर,व् विश्वप्रसिद्ध ईमारत तो शांति के ही समय में ही बन सकता है।
श्री पी•एन ओक ने बड़े पुष्ट प्रमाणों के आधार पर इसे इस्लाम के भारत आगमन से बहोत पूर्व की निर्मित हुई सिद्ध किया है।पर इतिहासकार मौन धारण किये बैठे है।
 मीनार में तीन स्थानों पर संवत 1256(1199ई•) अंकित है। कुतुबमीनार की दूसरी मंज़िल पर संवत 1204(1147ई•) अंकित है। पांचवी मंज़िल के प्रवेश द्वार के बाहर अंकित अभिलेख में इसे विश्वकर्मा प्रसाद कहा गया है। यह अभिलेख फ़िरोज़शाह तुगलक के समय संवत 1426(1361ई•) का है। अरबी फ़ारसी के अभिलेखों में मध्य में कमल फूल,घंटी,चक्र,और बिंदु अब भी स्पष्ट दिखाई दे रहे है। सर सय्यद अहमद खा ने इन्हें पढ़कर अपनी पुस्तक "असर-उस- संददी" में स्पष्ट घोषणा की है कि इस मीनार का निर्माण संभवतः राजपूतकाल में हुवा।
 वैसे भी मीनार के पास खड़ी मस्जिद,पलवल की मंदिर गिराकर बनवाई मस्जिद व् अजमेर के अढ़ाई दिन के झोपड़े की तरह है ऐबक इस मीनार पर भी अपना नाम लिखवा सकता था,पर उसका नाम नही मिलता। डा• बलराज शर्मा ने लिखा है की ऐबक के शासनकाल से पहले यह मीनार विद्यमान थी। 
इसका प्रमाण वह पत्र है,जिसे गोरी के दूत रुकुन्दीन ने 1176ई• में पृथ्वीराज को दिया था। इस पत्र में इस मीनार का वर्णन है। इससे भी इसका किसी मुस्लिम शासक द्वारा बनाया जाना सिद्ध नहीं होता।
श्री पी•एन ओक ने लिखा है--"कुतुबमीनार" अरबी नक्षत्रीय(वेध शास्त्र) स्तम्भ का घोतक है। सुलतान कुतुबुद्दीन से इसको सम्बन्ध करने और दरबारी पत्राचार में इनके नामोलेख की यही कहानी है।
 समय
व्यतीत होते-होते क़ुतुब स्तम्भ के साथ कुतुब्बुद्दीन का नाम अनायास ही संलघ्न हो गया। जिसने यह भ्रम उतपन्न कर दिया की कुतुबुद्दीन ने कुतुबमीनार बनवायी। (भारतीय इतिहास की भयंकर भूले,35)
हिन्दू राजाओ द्वारा निर्मित इमारतों को बड़े छल कपट से मुस्लिम
शासको द्वारा निर्मित बताया गया। ताजमहल,लालकिला,फतेहपुर
सिकरी आदि के विषय में भी
ऐसी ही भ्रान्ति है। ध्यान देने
की बात यह है कि भारत पर विजय प्राप्त करने के बाद
यहाँ अंग्रेज़ो ने अपने नाम पर नगरो,द्वीपो व् मार्गो के
नाम रखे। उसी प्रकार अनेक मुस्लिम आक्रांताओ ने
भी यहाँ के हिन्दू लोगो को मुसलमान बनाकर उनके नाम
बदले; मंदिरो को थोड़ा सा तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित किया;नगरो तक के
नाम बदल दिए और हिन्दू राजाओ के महलो को भी
इस्लामी रंग में रंगने की कोशिश
की। इन्ही में से कुछ को बाद में मकबरे
के रूप में प्रयोग किया गया,ताकि हिन्दू उन्हें पुनः वापस लेने का प्रयास
न करे। सबसे अधिक धर्म सहिष्णु कहे जाने वाले मुग़ल शासक
अकबर ने तो हल्दी घाटी के मैदान में हाथ
आए महा राणा प्रताप के हाथी "राम प्रसाद"का
भी नाम बदल कर "पीर प्रसाद" रखा था।
क्या कभी पशु भी हिन्दू-मुस्लिम होते
है?
काशी ,अयोध्या व् मथुरा के प्रमुख मंदिर इस बात के
साक्षी देते है की भारत में मुस्लिम शासको
द्वारा निर्मित अधिकांश मस्जिद मंदिर ही थे।सदियो से
चलती आई विचारधारा को मोड़ने वाले पी•एन
ओक को शोध के लिए प्रेरित करने वाली विचारधारा
थी कि यदि ये सब भवन मुस्लिम राजाओ ने बनवाए थे,तो
हिन्दू राजा कहाँ रहते थे। क्योंकि इस देश में मुल्लो के आने से
भी कई शाताब्दी पूर्व बने मंदिर व् किले
आज भी है,तो उनके महल कहाँ गए? इसका
सीधा सा उत्तर है की उनका
इस्लामीकरण किया गया। जिन शहरो के नाम आज
मुस्लिम(अहमदाबाद,अहमदनगर,फरीदाबाद,इलाहाबाद
आदि) है वे मुस्लिम राजाओ के नहीं बसाये और उनके
पहले ये नही है। जैसे-अलाउद्दीन
ख़िलजी ने चितौड़ को जीतकर उसका नाम
खिजराबाद रखा,मुहमद तुग़लक़ ने देवगिरि को राजधानी
बनाकर उसका नाम दौलताबाद रखा। हिंदूतीर्थ प्रयागराज
का नाम अकबर ने इल्लाहबाद(1583ई•) रखा। औरंगज़ेब ने
जनवरी 1670ई• में मथुरा का नाम इस्लामाबाद रखा।
बहादुरशाह ने 1708ई• में जोधपुर का नाम मुहम्मदाबाद और
अजमेर का इस्लामाबाद रखा।इससे सिद्ध होता है कि अपने लगभग
30वर्ष के शासन में शाहजहाँ भी भयंकर युद्धों व्
अकालों में उलझा रहा। वह ताजमहल जैसी इमारत
नहीं बनवा सकता था।

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