लैब में महीनों से काम बहुत जोर शोर से चल रहा था। लोग देर रात तक काम कर रहे थे और किसी ने भी लंबे अरसे से कोई छुट्टी नहीं ली थी।
एक वैज्ञानिक ऑफिस पहुँचते ही अपने बॉस को बोलता है के आज उसने अपने बच्चों को प्रदर्शनी दिखाने का वादा किया है इसलिए वो आज घर जल्दी जाना चाहता है। बॉस ने सहमति दे दी। खुशी-2 वो वैज्ञानिक काम में लग गया। काम कठिन था और धुन में लगे होने से उसे याद ही नहीं रहा कब रात्रि के 11 बज गए। वो दु:खी होकर घर पहुँचा परंतु बच्चे देर रात भी अपने पापा का इंतज़ार ढेर सारे खिलौनों के साथ कर रहे थे। बच्चे बहुत खुश थे। पता चला के उस वैज्ञानिक के बॉस खुद बच्चों को प्रदर्शनी दिखाने ले गए थे वो भी वक्त पर पहुँच कर।
वो बॉस कोई और नहीं खुद डॉ कलाम थे!!
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तारीख 18 मई 1998, स्थान पोकरण... सुबह के 7 बजे..
चित्र में रक्षा मंत्रालय की फ़ाइल के साथ
मेजर जनरल पृथ्वीराज उर्फ़ ए पी जे कलाम ।
पोखरण 2 शक्ति स्थल से कुछ किलो मीटर दूर।
कलाम साहब ने अपने संस्मरण में लिखा है कि माह मई में उस दिन भी सुबह सर्द थी । ठंडी हवाए जोर से बह रही थी । हम 14 लोग जल्द तैयार होकर रेत पर दौड़ने वाली टायरों युक्त मिलिट्री जीप में सवार होकर उस इलाके में पहुंचे जहा अलग-अलग स्थानों पर जमीन में 6 गहरे कुंए खोदे गए थे जिनमे से 5 में एटामिक/ हाइड्रोजन बम रख्खे जा चुके थे ।
कमांडेंट के आदेश मिलते ही कुछ ही मिनटों में ट्रको और बुलडोजरों का एक बड़ा काफिला आया और रेत की बोरियो से घेरे हुए सभी 6 गहरे कुंओ को मात्र 55 मिनट में रेत से भर ही नही दिया बल्कि उनके उपर रेत की एक-एक छोटी-छोटी पहाड़िया भी बना दी ।
इसके कुछ देर बाद 3 कुंओ में विस्फोट कराया गया जिसमे एक हाइड्रोजन बम था ।
तो ऐसे थे हमारे कलाम साहब । उस वक्त उनकी उम्र 65 वर्ष के आस-पास थी और वो लगातार 4 रातो में जागकर आप्रेसन "पोखरन 2" को सफल बनाने में लगे हुए थे और सफल बनवाया ।
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