Thursday, 9 July 2015

जब राजीव गांधी प्रधान मंत्री थे तो एक शाह बानो case हुआ था । हुआ यूँ था कि शाह बानो नामक एक मुसलमान औरत को उसके शौहर ने 3 बार तलाक़ तलाक़ तलाक़ कह के पिंड छुड़ा लिया । उसने अपने मियाँ जी को घसीट लिया । ऐसे कैसे तलाक़ ? खर्चा बरचा दो । गुज़ारा भत्ता दो ।
मियाँ जी बोले काहे का खर्चा बे ? शरीयत में जो लिखा है उस हिसाब से ये लो 100 रु मेहर की रकम और चलती बनो । तलाक ..........
शाह बानो बोली ठहर तुझे तो मैं बताती हूँ । और बीबी शाह बानो court चली गयी । मामला सुप्रीम court तक गया । और अंततः supreme court ने शाह बानो के हक़ में फैसला सुनाते हुए उनके शौहर को हुक्म दिया कि अपनी बीवी को गुज़ारा भत्ता दो ।
ये एक ऐतिहासिक फैसला था । भारत के supreme court ने सीधे सीधे इस्लामिक शरीयत के खिलाफ एक औरत के हक़ में फैसला दिया था । पूरे इस्लामिक जगत के हड़कंप मच गया । भारत की judiciary ने शरियत को चुनौती दी थी ।
राजीव गांधी सरकार मुसलामानों के दबाव में आ गयी और उसने अपने प्रचंड बहुमत के बल पे संविधान संशोधन कर supreme court के फैसले को पलट दिया और कानून बना के मुस्लिम औरतों का हक़ मारते हुए मुस्लिम शरीयत में judiciary के हस्तक्षेप को रोक दिया । शाह बानो को कोई गुज़ारा भत्ता नहीं मिला ।

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