कलाम साब की किताब से एक अंश:
जब में प्राइमरी में पढ़ता था तो तो हम चार मित्र एक साथ आगे बैठते थे।तीन हिंदू व् मै मुसलमान।मै बचपन से टोपी पहनकर स्कूल जाता था।एक मित्र उनमे शास्त्री जी थे अतः उनका बचपन में आठ वर्ष उम्र में यगोपवित संस्कार हो गया था।एक बार हम चारो मित्र आगे जब बैठे थे सहसा अध्यापक महोदय का ध्यान उनके पीताम्बर जनेऊ पे गया।अध्यापक जी को लगा ब्राह्मण का धर्म भ्रस्ट हो जायेगा।उन्होंने मुझे पिछली बेंच पर बैठा दिया।मेरे मित्र ने ये वाकया अपने पिताजी से बताई।अगले दिन शास्त्री जी ने विद्यालय पहुँचकर अध्यापक महोदय से कहा आप बच्चों के कोमल मन को कुप्रभावित कर रहे हैं।अध्यापक महोदय ने खेद जताया।उस घटना का मेरे मन में गहरा प्रभाव पढा।जीवन में सहअस्तित्व व् सामाजिक समरसता का पहला पाठ मैने शास्त्री जी से सीखा।
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जब में प्राइमरी में पढ़ता था तो तो हम चार मित्र एक साथ आगे बैठते थे।तीन हिंदू व् मै मुसलमान।मै बचपन से टोपी पहनकर स्कूल जाता था।एक मित्र उनमे शास्त्री जी थे अतः उनका बचपन में आठ वर्ष उम्र में यगोपवित संस्कार हो गया था।एक बार हम चारो मित्र आगे जब बैठे थे सहसा अध्यापक महोदय का ध्यान उनके पीताम्बर जनेऊ पे गया।अध्यापक जी को लगा ब्राह्मण का धर्म भ्रस्ट हो जायेगा।उन्होंने मुझे पिछली बेंच पर बैठा दिया।मेरे मित्र ने ये वाकया अपने पिताजी से बताई।अगले दिन शास्त्री जी ने विद्यालय पहुँचकर अध्यापक महोदय से कहा आप बच्चों के कोमल मन को कुप्रभावित कर रहे हैं।अध्यापक महोदय ने खेद जताया।उस घटना का मेरे मन में गहरा प्रभाव पढा।जीवन में सहअस्तित्व व् सामाजिक समरसता का पहला पाठ मैने शास्त्री जी से सीखा।
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