Tuesday, 28 July 2015

कलाम साब की किताब से एक अंश:
जब में प्राइमरी में पढ़ता था तो तो हम चार मित्र एक साथ आगे बैठते थे।तीन हिंदू व् मै मुसलमान।मै बचपन से टोपी पहनकर स्कूल जाता था।एक मित्र उनमे शास्त्री जी थे अतः उनका बचपन में आठ वर्ष उम्र में यगोपवित संस्कार हो गया था।एक बार हम चारो मित्र आगे जब बैठे थे सहसा अध्यापक महोदय का ध्यान उनके पीताम्बर जनेऊ पे गया।अध्यापक जी को लगा ब्राह्मण का धर्म भ्रस्ट हो जायेगा।उन्होंने मुझे पिछली बेंच पर बैठा दिया।मेरे मित्र ने ये वाकया अपने पिताजी से बताई।अगले दिन शास्त्री जी ने विद्यालय पहुँचकर अध्यापक महोदय से कहा आप बच्चों के कोमल मन को कुप्रभावित कर रहे हैं।अध्यापक महोदय ने खेद जताया।उस घटना का मेरे मन में गहरा प्रभाव पढा।जीवन में सहअस्तित्व व् सामाजिक समरसता का पहला पाठ मैने शास्त्री जी से सीखा।
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नवंबर 2002 में रमज़ान के महीने में कलाम ने अपने सचिव को बुला कर पूछा, ''ये बताइए
कि हम इफ़्तार भोज का आयोजन क्यों करें? वैसे भी यहां आमंत्रित लोग खाते-पीते लोग
होते हैं. आप इफ़्तार पर कितना ख़र्च करते हैं ?''
राष्ट्रपति भवन के आतिथ्य विभाग के प्रमुख को फ़ोन लगाया गया ....
उन्होंने बताया कि इफ़्तार भोज पर मोटे तौर पर ढ़ाई लाख रुपए का ख़र्च आता है ....
कलाम ने कहा, ''हम ये पैसा अनाथालयों को क्यों नहीं दे सकते? आप अनाथालयों को
चुनिए और ये सुनिश्चित करिए कि ये पैसा बर्बाद न जाए.''
राष्ट्रपति भवन की ओर से इफ़्तार के लिए निर्धारित राशि से आटे, दाल, कंबल और स्वेटर
का इंतेज़ाम किया गया और उसे 28 अनाथालयों के बच्चों में बांटा गया...
लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हो गई ....
कलाम ने नायर से कहा, ''ये सामान तो आपने सरकार के पैसे से ख़रीदवाया है. इसमें मेरा
योगदान क्या हुआ ? मैं आपको एक लाख रुपए का चेक दे रहा हूँ. उसका भी उसी तरह
इस्तेमाल करिए जैसे आपने इफ़्तार के लिए निर्धारित पैसे का किया है, लेकिन किसी को
ये मत बताइए कि ये पैसे मैंने दिए हैं.''
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डा. कलाम भारत सरकार के रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार थे । और दुर्योग से उस समय भारत का रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव थे । मुलायम ने मुसलमानो की कई सभाओ में मंच से कहना शुरू कर दिया की उन्होंने एक मुस्लिम को अपना सलाहकार नियुक्त किया है ।
ये खबर जब कलाम साहब को मिली तो उन्होंने प्रोटोकोल भूलकर मुलायम सिंह को फटकार लगाते हुए कहा की आप मेरी काबिलियत का यूँ मजाक मत बनाइये आज मै जो कुछ हूँ अपनी काबिलियत से हूँ न की मुसलमान होने के कारण और मैं देवी सरस्वती की पूजा करता हूँ ।
तब धूर्त मुलायम खामोश हो गया
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