नेताओं के घर इफ्तार पार्टी ही क्यों, जागरण, रामायण पाठ, प्रवचन, लंगर या हनुमान चालीसा क्यों नहीं?
दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से लेकर लखनऊ के राजभवन तक हर साल रमज़ान के महीने में इफ्तार पार्टी का आयोजन होता है। नेताओं की बात करें तो सोनिया गांधी हों या मुलायम सिंह यादव। नीतीश कुमार या फिर लालू प्रसाद यादव। इनमें से शायद ही कोई बचा होगा जिसने अपने घर में इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं किया हो। मेरा सवाल है कि नवरात्रि के दिनों में जागरण का आयोजन क्यों नहीं करवाते?
महज इसी एक सवाल पर आप कहेंगे कि मैं मुस्लिम विरोधी बात कर रहा हूं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(1), जिसमें कहा गया है कि सरकार किसी भी नागरिक के साथ उसके धर्म, रंग, जाति, लिंग, जन्मस्थान, आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती। तो देश के अलग-अलग धर्मों के बीच ऐसा भेदभाव क्यों? देश के नेता नवरात्रि में जागरण क्यों नहीं करवाते? पार्टी कार्यालयों से उत्तर मिला- हम अल्पसंख्यकों के हितैशी हैं, इसलिये।
अब मेरा अगला सवाल
अगर मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं और आप उनके लिये हर साल इफ्तार पार्टी पार्टी का आयोजन रखते हैं, तो ईसाई, जैन, बुध, पारसी और सिख भी तो अल्पसंख्यक हैं? तो क्रिसमस पर राजभवन में केक क्यों नहीं काटा जाता? गुरुनानक जयंती पर मुख्यमंत्री आवास पर लंगर का आयोजन क्यों नहीं किया जाता?
इन सवालों का जवाब शायद किसी भी पार्टी कार्यालय के पास नहीं होगा, क्योंकि इफ्तार से ही उनकी राजनीति की रफ्तार जुड़ी हुई है।
अगर मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं और आप उनके लिये हर साल इफ्तार पार्टी पार्टी का आयोजन रखते हैं, तो ईसाई, जैन, बुध, पारसी और सिख भी तो अल्पसंख्यक हैं? तो क्रिसमस पर राजभवन में केक क्यों नहीं काटा जाता? गुरुनानक जयंती पर मुख्यमंत्री आवास पर लंगर का आयोजन क्यों नहीं किया जाता?
इन सवालों का जवाब शायद किसी भी पार्टी कार्यालय के पास नहीं होगा, क्योंकि इफ्तार से ही उनकी राजनीति की रफ्तार जुड़ी हुई है।
आप गौर करें,
जिन राज्यों में चुनाव नजदीक हैं, या फिर जिन राज्यों में सरकार की चूलें हिलीं हुई हैं, वहां पर इफ्तार पार्टी का आयोजन वृहद स्तर पर हो रहा है। सबसे बड़ा उदाहरण बिहार है। बिहार में सुशील मोदी, राम विलास पासवान से लेकर लालू-नीतीश तक सब इफ्तार के बहाने मुस्लिम वोट पक्का करने में जुटे हुए हैं। वहीं यूपी और मध्य प्रदेश में सरकारों की चूलें हिली होने की वजह से इफ्तार के आयोजन धड़ाधड़ किये जा रहे हैं। जिन राज्यों में चुनाव दूर हैं वहां कुछ खास आयोजन नहीं हो रहा। जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश।
मेरा सवाल उन नेताओं से है, वे मुसलमानों के जीवन की रफ्तार बढ़ाने के प्रयास कब करेंगे? क्योंकि अगर ये सारी इफ्तार पार्टियां इस 13.4 प्रतिशत आबादी के साथ महज छल है, तो इससे बड़े दु:ख की बात और कुछ नहीं हो सकती।
No comments:
Post a Comment