Friday, 31 July 2015

आज याकूब का जनाजा देख के ऐसा लग रहा है के हज सब्सिडी, मजार, मस्जिद, अल्पसंख्यक अनुदान, मदरसे आदि सब सहायता करना चुतियापा तो है ही साथ ही अपने व भविष्य की पीढ़ी की जड़ें काट रहीं हैं सरकारें।
पहले तो सेक्युलरिज्म ख़त्म करने की कोई ठोस रणनिति होनी चाहिए। फिर मदरसे से ताल्लुक रखने वालों के वोट ख़त्म होने चाहिए। साथ ही मुस्लिम लीग को बिजलेन्स के दायरे में लाना होगा। मस्जिदों की आमद पर भी निगरानी रखनी होगी।
उम्मीद नहीं मुझे के मोदी सरकार इनमें से कुछ भी कर पाएगी। अपने भविष्य की पीढ़ियों का गुलाम होना देश के मुकद्दर में लिखा है शायद।
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देश का अहित सोचने वालों में प्रशांत भूषण जी का नाम सर्वोपरि रहेगा ! कभी ये कश्मीर, पाकिस्तान को सौंपने की बात करते हैं तो कभी आतंकवादियों के बचाव की ! मुंबई बम ब्लास्ट में, २५७ निर्दोष लोगों की मौत के जिम्मेदार याकूब मेमन को बचाने की अंतिम कोशिश आधी रात को प्रशांत भूषण द्वारा की गयी ! आतंकवादियों को फांसी मिले, ये सुनकर नींद नहीं आ रही थी इनको ! न खुद सोया न सोने दिया ! लेकिन बेचारे का आतंक-प्रेम हार गया ! सुनवाई हुयी और अंततोगत्वा न्याय की ही जीत हुयी ! धिक्कार है प्रशांत भूषण जैसे आतंकवादियों के शुभचिंतकों पर !
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Zee न्यूज पर मनिदंर सिंह बिट्टा ने बहुत बड़ी बात कही - इन आतंकवादीयों का केस लड़ने वाले नामी वकील होते है जिनका किसी केस में एक ही सुनवाई का खर्चा लाखों रूपया होता है और वो खर्चा कौन फंडिंग करता है इनके तार किन किन से जुड़े होते हैं इसकी जाँच होनी चाहिए...
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एक ललित मोदी की बीमार पत्नी के इलाज के लिए खत लिखने वाली सुषमा स्वराज अगर दोषी हैं तो....
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याकूब मेमन को बचाने के लिए खत लिखने वाले लोग आतंकवादी कैसे नहीं हुए ...!!
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कोई समझाए...!
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जिनको ये लगता है कि हमें 'ख़ास वर्ग' का होने के
कारण हर बार निशाना बनाया जाता है और हमारी
देशभक्ति पर शक किया जाता है, उनको ये भी देखना
चाहिए कि किस तरह पूरा देश अब्दुल कलाम साहब
के निधन पर शोक में डूब गया है। देश का हर
नागरिक आज शोकमग्न है और हर कोई कलाम साहब
को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है।
"इज़्ज़त कमाई जाती है, माँगी नहीं जाती
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जितनी धाक 'पोखरण-परमाणु-विस्फोट' से हमने विश्व् में जमाई थी .. उतना ही प्रभशाली होगा 'दाऊद इब्राहिम' को फंदे पर झुलाना ..
इस बात को माननीय न्यायालय को समझने की जरुरत है.. साथ ही केस चालू रख फाँसी का अंतिम आदेश दे दें ताकि उसके पकड़े जाते ही लटकाया जा सके ।
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भारत एक मात्र देश हे जिसके सभ्य सेक्युलर समाज में .....
फांसी पे चढ़ाना .....नाजायज है...मानवता के खिलाफ हे...
मगर बम विस्फोट करना.... जायज है.......
जुलूस निकाल कर पथराव करना... जायज है....
कार्टून बनाने पे कत्ल करना जायज है......
नावालिक से बलात्कार कर जघन्य हत्या करदेना जायज है....
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हिन्दू धर्म और इस्लाम में यही बुनियादी फर्क है । 26/11 हमले में घर से भागा एक हिन्दू भी आरोपी है । और उसके माँ बाप खुद चिल्ला चिल्लाकर कहते है की मेरे बेटे को फांसी दो । आर्थर रोड जेल से इकलौता बेटा हजारो पत्र लिखकर अपने माँ बाप से मिलने की गुहार लगाता है लेकिन माँ बाप मिलने तक नही जाते
राक्षसी प्रवृति के लोग इस भावना को कभी नही समझेंगे


जरा सोचिये जिसका लगभग सारा कुनबा जेल में हो उसके परिवार का और वकीलों को दी गयी करोड़ों की फीस का खर्चा कहाँ से आया किसने दिया...?
क्या ये जाँच का विषय नहीं...? आतंकियों और उनके हिमायतियों का महिमामंडन बंद करो ‪#‎प्रेश्यायों‬ और इस तथ्य की जाँच करो....!
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देखा दाऊद का जलवा ... देखी पाकिस्तान की ताकत ... देखा "सेकुलर-वामपंथी गिरोह"
का बाहुबल ... पान-सिगरेट की दुकान की तरह रात के दो बजे सुप्रीम कोर्ट खुलवाई जाती
ै, लाखों की फीस लेने वाले दस वकील रात भर खड़े रहते हैं... और सुनवाई भी होती है...
इसे कहते हैं "दम"... ये होता है "जेहादी नेटवर्क" और पैसे की ताकत ....... तुम्हारी तो
इतनी भी औकात नहीं कि पिछले कई साल से बिना चार्जशीट के जेल में सड़ रही एक
कैंसरग्रस्त साध्वी को बचा सको... वास्तव में दया मिश्रित क्रोध और क्रोध मिश्रित दया
आती है हिंदुओं तुम पर ... तुम तो इतने मूर्ख हो कि तुम्हारे बीच बैठी वामपंथी,सेकुलर,
गांधीवादी जयचंदों, मीर जाफरों की फ़ौज को ही नहीं पहचान पाते... तो फिर अपनी
और अपने बच्चों की चिताओं की लकडियाँ खुद ही सजाने से तुम्हें कौन रोक सकता
है .....
By... Suresh Chiplunkar
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ये कौम कभी इंसानियत नही समझ सकती । इन दोगलो ने ये नही सोचा की ये गद्दार आतंकी याकूब के गुनाह उसे कयामत तक दोखज में सड़ने के लायक है ।
दुश्मन देश के साथ मिलकर ऐसे सीरियल विस्फोट को अंजाम देना जिसमे 260 लोग मरे । और बम भी ऐसे जगहों पर रखे ताकि ज्यादा से ज्यादा इंसान मरे ।
ऐसे सूअर के जनाने में इतनी भीड़ ? फिर भी लोग कहते है इस्लाम शांतीप्रिय मजहब है । इस याकूब के लाश के साथ वही करना चाहिए था जो अमेरिका ने ओसामा के लाश के साथ किया यानी उस पर पेशाब करके समुद्र में फेक देना चाहिए था । कम से कम ये खूंखार हत्यारा किसी शार्क का पेट तो भर सकता था
याकूब के जनाजे में आने वाले लोगो से याकूब का क्या सम्बन्ध ? ये न तो याकूब के रिस्तेदार है न सबंधी ।
बस यही कि याकूब की सोच और उसके द्वारा किये गए काम में इन सबकी सोच और कदाचित काम करने की इक्षा एक जैसे है ।
कौन कहेंगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नही होता ? धर्म एक जैसा है सोच एक जैसी है तभी तो ये सब इकठ्ठे आये ।
                                                                       






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