गीता में अध्यात्म ज्ञान के विषय में बताया गया हे की
ये ज्ञान विज्ञान सहित हे करने में अतिसुगम ,परत्यक्ष फल देने वाला ,अतिगुप्त ,सब विद्याओ का राजा ,धर्य ओर सुख देने वाला हे
ओर ये भी बताया की
देवताओ को पूजने वाले देवताओ के स्वरूप को भूत प्रेत पूजने वाले प्रेतो के योनि को ओर ओर वो लोग वापिस फिर लोट कर आते हे
अध्यात्म को पूजने वाले पुनर्जनम को प्राप्त नही होते
आप भी जान सकते हे अध्यात्म को क्यो की करने में अति सुगम हे यानि बहुत ही आसान /ओर जीवन सभी कार्य करते हुए भी इसे किया जा सकता हे /इसमे बाहरी उपकर्म कुछ भी नही करना पड़ता
लेकिन बताया की इस अध्यात्म ज्ञान को आप कहा से प्राप्त करे
अध्याय 4 श्लोक 34
आप एक एसे गुरु के पास पास जाए तो तत्व ज्ञानी हो यानि एलीमेंट्री साइंस का अनुभवी हो /जो ईश्वर को भली भांति जानता हो /ओर आप भी सिंगल माइंड हो कर उस गुरु के पास भली भांति ही जाना /फिर उनकी सेवा भी करना तब वो ज्ञानी पुरुष तुझे तत्व का दर्शन करवा देगे /जिस से तुम इस परकार की कोई भी मानसिक टेंशन मुक्त हो जाएगा
इस लिए तत्व ज्ञानी गुरु से ज्ञान प्राप्त कर ईश्वर को अपने अंदर परत्यक्ष करे
गुरु का मतलब जो मुश्किल को आसान करदे
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माद्रिद (स्पेन) : पुलिस जांच में यह बात स्पष्ट हुई है, कि गत
४८ वर्षोंसे स्पेन में ३ लक्ष नवजात शिशुओंको चुराकर नि:संतान
दम्पतियोंको दत्तक हेतु विक्रय किया गया। इस अपराध में अधिक
संख्या में ईसाई, पादरी, डॉक्टर, नर्स तथा नन्स
सम्मिलित हैं।
ये घटनाएं सन १९३९ से १९८७ की कालावधि में
घटी हैं। स्पेन में जनरल फ्रांको हुकूमशाह
की अत्याचारी सत्ता थी।
उसी समय से शिशुओंको चुराने की ये
घटनाएं घट रही हैं।
उस समय स्पेन देश अत्यंत निर्धन था। निर्धन गर्भवती
माताएं शिशु को जन्म देने के लिए शासकीय रुग्णालय
की सहायता हेतु आती थीं।
शिशु को जन्म देने के पश्चात उनके माता-पिता को यह झूठ बताया जाता
था, कि जन्म लेते ही उन के शिशु की मृत्यु
हो गई अथवा मृतावस्था में ही उसका जन्म हुआ है।
उस समय अभिभावकोंको शिशु का कलेवर देखने अथवा उसके अंतिम
संस्कार हेतु उपस्थित रहने की अनुमति
नहीं थी। नि:संतान दंपति इन नवजात
शिशुओंको अपरिमित धन देकर क्रय करते थे। ईसाई पादरी
ऐसे प्रकरण को समाजसेवा का मधुर नाम देते थे। उन की
दृष्टि से रुग्णालय के निर्धन लोगों में शिशु का अच्छी
तरह से लालन-पालन करने की क्षमता न होने के
कारण उस शिशु के उज्ज्वल भविष्य के लिए उसे धनवान लोगोंके घर
में दत्तक देकर वे एक प्रकार से उन पर उपकार ही
कर रहे थे।
कुछ वर्ष पूर्व एक नागरिक ने मृत्युशय्या पर उसके दत्तक पुत्र को
वास्तविक बात बताई, उस समय यह पूरी घटना सामने
आई। शासन ने पुलिस को जांच करने के लिए बताया। तब उन्हें अनेक
सुरस कथाएं सुनने में आर्इं। पुलिस प्रवक्ता ने बताया, कि अब
प्रत्येक घटना की जांच स्वतंत्र रूप से की
जा रही है।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
ये ज्ञान विज्ञान सहित हे करने में अतिसुगम ,परत्यक्ष फल देने वाला ,अतिगुप्त ,सब विद्याओ का राजा ,धर्य ओर सुख देने वाला हे
ओर ये भी बताया की
देवताओ को पूजने वाले देवताओ के स्वरूप को भूत प्रेत पूजने वाले प्रेतो के योनि को ओर ओर वो लोग वापिस फिर लोट कर आते हे
अध्यात्म को पूजने वाले पुनर्जनम को प्राप्त नही होते
आप भी जान सकते हे अध्यात्म को क्यो की करने में अति सुगम हे यानि बहुत ही आसान /ओर जीवन सभी कार्य करते हुए भी इसे किया जा सकता हे /इसमे बाहरी उपकर्म कुछ भी नही करना पड़ता
लेकिन बताया की इस अध्यात्म ज्ञान को आप कहा से प्राप्त करे
अध्याय 4 श्लोक 34
आप एक एसे गुरु के पास पास जाए तो तत्व ज्ञानी हो यानि एलीमेंट्री साइंस का अनुभवी हो /जो ईश्वर को भली भांति जानता हो /ओर आप भी सिंगल माइंड हो कर उस गुरु के पास भली भांति ही जाना /फिर उनकी सेवा भी करना तब वो ज्ञानी पुरुष तुझे तत्व का दर्शन करवा देगे /जिस से तुम इस परकार की कोई भी मानसिक टेंशन मुक्त हो जाएगा
इस लिए तत्व ज्ञानी गुरु से ज्ञान प्राप्त कर ईश्वर को अपने अंदर परत्यक्ष करे
गुरु का मतलब जो मुश्किल को आसान करदे
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माद्रिद (स्पेन) : पुलिस जांच में यह बात स्पष्ट हुई है, कि गत
४८ वर्षोंसे स्पेन में ३ लक्ष नवजात शिशुओंको चुराकर नि:संतान
दम्पतियोंको दत्तक हेतु विक्रय किया गया। इस अपराध में अधिक
संख्या में ईसाई, पादरी, डॉक्टर, नर्स तथा नन्स
सम्मिलित हैं।
ये घटनाएं सन १९३९ से १९८७ की कालावधि में
घटी हैं। स्पेन में जनरल फ्रांको हुकूमशाह
की अत्याचारी सत्ता थी।
उसी समय से शिशुओंको चुराने की ये
घटनाएं घट रही हैं।
उस समय स्पेन देश अत्यंत निर्धन था। निर्धन गर्भवती
माताएं शिशु को जन्म देने के लिए शासकीय रुग्णालय
की सहायता हेतु आती थीं।
शिशु को जन्म देने के पश्चात उनके माता-पिता को यह झूठ बताया जाता
था, कि जन्म लेते ही उन के शिशु की मृत्यु
हो गई अथवा मृतावस्था में ही उसका जन्म हुआ है।
उस समय अभिभावकोंको शिशु का कलेवर देखने अथवा उसके अंतिम
संस्कार हेतु उपस्थित रहने की अनुमति
नहीं थी। नि:संतान दंपति इन नवजात
शिशुओंको अपरिमित धन देकर क्रय करते थे। ईसाई पादरी
ऐसे प्रकरण को समाजसेवा का मधुर नाम देते थे। उन की
दृष्टि से रुग्णालय के निर्धन लोगों में शिशु का अच्छी
तरह से लालन-पालन करने की क्षमता न होने के
कारण उस शिशु के उज्ज्वल भविष्य के लिए उसे धनवान लोगोंके घर
में दत्तक देकर वे एक प्रकार से उन पर उपकार ही
कर रहे थे।
कुछ वर्ष पूर्व एक नागरिक ने मृत्युशय्या पर उसके दत्तक पुत्र को
वास्तविक बात बताई, उस समय यह पूरी घटना सामने
आई। शासन ने पुलिस को जांच करने के लिए बताया। तब उन्हें अनेक
सुरस कथाएं सुनने में आर्इं। पुलिस प्रवक्ता ने बताया, कि अब
प्रत्येक घटना की जांच स्वतंत्र रूप से की
जा रही है।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
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